भाषा-साहित्य

विश्व नागरी विज्ञान संस्थान

देवनागरी लिपि भारत की प्राचीन और सर्वाधिक भाषाओं में प्रयुक्त लिपि है। भारत के संविधान में हिन्दी भारत की राजभाषा के रूप में अभिमंडित करने के साथ-साथ देवनागरी लिपि को भी स्वीकार किया गया है। यह लिपि अशोककालीन ब्राह्नमी लिपियों की आधार लिपि है और आधुनिक भारतीय लिपियों के अध्ययन के लिए मूलभूत लिपि मानी जाती है। यह भारतीय भाषाओं और विश्व की अनेक भाषाओं की ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करने में पूर्णतया सक्षम है। संविधान की अष्टम अनुसूची में उल्लिखित बाईस भाषाओं में दस भाषाओं के लिए इसका प्रयोग हो रहा है। यह लिपि रोमन, अरबी, चीनी आदि लिपियों की अपेक्षा अधिक वैज्ञानिक और उपयोगी है। इसमें उच्चारण और वर्तनी के बीच प्रायः अंतर बहुत कम ही मिलता है। वर्ष 1678 में मुद्रण में नागरी लिपि का प्रयोग पहली बार हुआ था। वर्ष 1892 से नागरी लिपि के मानकीकरण के लिए प्रयास आरंभ हो गए थे तथा सन् 1912 और 1913 में इसके संशोधन और परिष्करण के लिए विचार-विमर्श भी हुआ। यह प्रक्रिया 1938 तक चलती रही। 1953 में भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई। उसी वर्ष तत्कालीन शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार ने एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें देवनागरी के परिप्रेक्ष्य में टाइपराइटर, मुद्रण और दूरमुद्रण में मानकीकरण विषय पर चर्चा-परिचर्चा हुई। बाद में भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने देवनागरी लिपि तथा हिन्दी वर्तनी के मानकीकरण पर कई कार्यगोष्ठियों का आयोजन किया।

इतना सब होते हुए भी देवनागरी के मानकीकरण को उचित मान्यता नहीं मिल पाई। मानक नागरी लिपि के प्रचार-प्रसार के लिए किसी सरकारी अकादमी या संस्थाओं और गैर-सरकारी संस्थाओं के प्रयास सफल नहीं हो पाए। फ्रांस में एक मान्यता-प्राप्त अकादमी है जो फ्रांसीसी ध्वनियों और उच्चारण में मानक रोमन लिपि के विकास और प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान कर रही है।

इसी संदर्भ में देवनागरी लिपि के विकास और मानकीकरण का बीड़ा विश्व नागरी विज्ञान संस्थान ने लिया। यह एक स्वैच्छिक पंजीकृत संस्था है जो देवनागरी लिपि और हिंदी भाषा के सहयोग से विकास और अनुसंधान कार्य में संलग्न है। यह संस्थान भारतीय भाषाओं और विश्व की भाषाओं के अनुरूप देवनागरी में वर्णों का विकास करता है। सूचना प्रौद्यागिकी का मुक्त क्षेत्र प्रौद्योगिकी को नागरी के प्रयोग के लिए प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त भारत की सभी भाषाओं, जनजातीय भाषाओं, बोलियों, लिपि रहित भाषाओं के लिए नागरी लिपि अपनानाए भारत और विश्व की भाषाओं की लिपियों का नागरी लिपियों से तुलनात्मक अध्ययन और अनुसंधान करना है। साथ ही नागरी लिपि के लिए विकसित फान्टों का समन्वयन करना तथा यूनिकोड में उपलब्ध दोषों के समाधान के लिए कार्य किया जा रहा है। इससे देवनागरी लिपि न केवल हिन्दी के लिए उपयोगी होगी वरन् अन्य भारतीय भाषाओं तथा विश्व की भाषाओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। भारतीय भाषाओं का क्षेत्र तो विस्तृत होगी। साथ ही विश्व की भाषाओं को ज्ञान हमें सहज रूप से तथा सुगमता से प्राप्त होगा।

सन् 2008 में के.आई.आई.टी. ग्रुप ऑफ कॉलेजिज़ के अध्यक्ष और शिक्षाविद् माननीय श्री बलदेवराज कामराह की लब्ध-प्रतिष्ठ भाषाविज्ञानी और शिक्षाविद् प्रो. कृष्णकुमार गोस्वामी तथा के साथ बातचीत हुई। बातचीत में सुविख्यात वैज्ञानिक डॉ. श्यामसुंदर अग्रवाल भी थे। इस बातचीत से नागरी के अनुसंधान और विकास के लिए संस्थान की परिकल्पना बनी। बाद में सुप्रसिद्ध कंप्यूटर विज्ञानी डॉ. ओम विकास। सुविख्यात भाषाविद् डॉ. परमानंद पांचाल। सुप्रसिद्ध सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ श्री विजयेंद्र एन. शुक्ल तथा के.आई.आई.टी. गु्रप ऑफ कॉलेजिज़ के मुख्य कार्यपालक अधिकारी तथा शिक्षाविद् डॉ. हर्षवर्धन के सहयोग से संस्थान की स्थापना हुई। इसके अतिरिक्त विश्व हिन्दी सचिवालय। मारिशस के महासचिव और विदेश मंत्रालय] भारत सरकार के उपसचिव राजभाषा को भी कार्यकारिणी में मनोनीत करने का प्रावधान रखा गया। टेक्सॅस विश्वविद्यालय अमेरिका के प्रो0 हर्मन वाॅन ऑल्फन का भी इसकी स्थापना में सहयोग मिला। संस्थान के.आई.आई.टी. ग्रुप ऑफ़ कालेजिज़, गुडगाँव के सहयोग से बी.टेक, एम.टेक, बी.एड, एम.एड आदि पाठ्यक्रमों में देवनागरी लिपि में शोधकार्य करा रहा है, जिसमें शोध निर्देशक सूचना प्रौद्योगिकी और कंप्यूटर विशेषज्ञों के साथ-साथ भाषावैज्ञानिक भी कार्यरत है। संस्थान हर वर्ष देवनागरी लिपि और सूचना प्रौद्योगिकी के संबंध में भाषाविदों, शिक्षाविदों, पत्रकारों, सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों, इंजीनियरों, साहित्यकारों, विद्वानों आदि के सहयोग से संगोष्ठी, कार्यगोष्ठी, कार्यशाला, विशेष व्याख्यान आदि का आयोजन करता है। अब तक पाँच संगोष्ठियाँ, चार विशेष व्याख्यान और तीन कार्यशालाएँ आयोजित की जा चुकी हैं। कुछ आयोजनों का विवरण उल्लेखनीय है।

19 अगस्त, 2010 को टेक्सॅस विश्वविद्यालय, आस्टिन अमेरिका के दक्षिण एशियाई अध्ययन संस्थान के हिन्दी-उर्दू फ्लेगशिप के निदेशक प्रो.हर्मन वॉन ऑल्फन को ‘अमेरिका में हिन्दी की स्थिति विषय पर व्याख्यान हुआ। प्रो. वॉन ऑल्फन ने बताया कि अमेरिका में विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त हिन्दी के कई स्कूलों में भी हिन्दी पढ़ाई जाती है। ग्रीष्मकाल में अटलांटा में एक सौ अमरीकी बालकों को दस दिन का हिन्दी शिक्षण कार्यक्रम चलता है। अमेरिका में हिन्दी की आवश्यकता को महसूस करते हुए अमेरिकन सरकार ने हिन्दी-उर्दू फ्लेगशिप कार्यक्रम प्रारंभ किया है जिसका उद्देश्य शिक्षार्थियों को वैश्विक व्यवसायी (ग्लोबल प्रोफ़ेशनल) बनाना है। इसमें डॉक्टर इंजीनियर, प्रशासनिक आदि लोग हिंदी सीखते हैं।

28 अप्रैल 2011 को के.आई.आई.टी. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, गुड़गाँव में देवनागरी लिपि और सूचना प्रौद्योगिकी विषयक विचार-गोष्ठी का आयोजन हुआ। इसमें सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार की निदेशक और वैज्ञानिक श्रीमती स्वर्णलता, डॉ. ओमविकास, श्री बलदेव राज कामराह, डॉ.परमानंद पांचाल, प्रो.गंगा प्रसाद विमल, श्री वी.एन.शुक्ल, डॉ.श्याम सुंदर अग्रवाल, प्रो. ठाकुरदास, डॉ. मोहनलाल सर आदि विद्वानों ने देवनागरी लिपि के विकास और मानकीकरण में सूचना प्रौद्योगिकी की उपयोगिता पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

17 अक्टूबर, 2012 को साहित्य अकादमी और नागरी संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में नई दिल्ली में साहित्य अकादमी के सभागार में देवनागरी लिपि और सूचना प्रौद्योगिकी की: चुनौतियाँ और समाधान, विषय पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इसमें महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति श्री विभूति नारायण राय, साहित्यकार श्री माधव कौशिक, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के डॉ. रणजीत साहा, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी  विभागाध्यक्ष प्रो. गोपेश्वर सिंह, सुश्री लीना महेंदले आई.ए.एस (बैंगलूरू), इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविदतलय के निदेशक प्रो. वी.रा.जगन्नाथन, साहित्य अकादेमी के उपसचिव श्री ब्रजेंद्र त्रिपाठी, केरल विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. तंकमणि अम्मा (केरल), सुश्री सुधा सिन्ही (पांडिचेरी), पूर्वोत्तर पर्वतीय शिलांग के प्रो. शैलेंद्र कुमार सिंह, नागरी लिपि परिषद के महा सचिव डॉ. परमानंद पांचाल, डॉ. जगदीश वर्मा, दिल्ली अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. विमलेश कांति वर्मा, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के पूर्व वरिष्ठ निदेशक डॉ. ओमविकास, संस्थान के अध्यक्ष श्री बलदेवराज कामराह, उपाध्यक्ष डॉ. श्याम सुंदर अग्रवाल और कोशाध्यक्ष डॉ हर्ष वर्धन ने सक्रिय रूप से भाग लिया और अपने विचार प्रस्तुत किए।

विश्वनागरी विज्ञान संस्थान की ओर से सन 2012 के प्रारंभ में देवनागरी लिपि के मानकीकरण को मान्यता देने के संबंध में भारतीय मानक ब्यूरो से अनुरोध किया गया। ब्यूरो ने प्रो. कृष्णकुमार गोस्वामी की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय समिति का गठन (ब्यूरो आॅफ़ इंडियन स्टैंडर्डए पूर्व आई.एस.आई) किया जिसमें विश्व नागरी विज्ञान संस्थान के अध्यक्ष श्री बलदेवराज कामराह, के आई आई टी ग्रुप ऑफ कॉलेजेज़ के महानिदेशक डॉ. श्याम सुंदर अग्रवाल, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के शिक्षाधिकारी डॉ. दीपक पांडेय, एन.सी.ई.आर.टी. की भाषा विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रा सदायत, राजभाषा विभाग के केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो के निदेशक डॉ. श्रीनारायण सिंह ‘समीर’ साहित्य अकादमी के उपसचिव श्री ब्रजेश त्रिपाठी, प्रगत संगणन विकास केंद्र (सी.डैक) के निदेशक श्री वी.एन. शुक्ल, नेशनल बुक ट्रस्ट की संपादक श्रीमती उमा बंसल, अमरावती विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. शंकर बुंदेले, बैगलूरू से भाषाविद प्रो. ललितांबा, अमर उजाला समाचारपत्र के संपादक श्री शंभूनाथ शुक्ल, केंद्रीय हिन्दी संस्थान के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. ठाकुरदास, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक प्रो. वी.रा.जगन्नाथन सदस्य थे और ब्यूरो से दो वैज्ञानिक श्री एन.के.पाल और श्रीमती बिंदु मेहता पदेन सदस्य थे। यह मानक रूप स्वयं केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा स्वीकृत लिपि पर आधारित है जिसे राष्ट्रीय समिति ने काफी विचार-विमर्श के बाद पारित कराया। इसका लोकार्पण 28 अगस्त 2012 को नई दिल्ली में ब्यूरो कार्यालय में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव श्री राजीव अग्रवाल आई.ए.एस. ने किया। इसमें उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के विशेष सचिव श्री पंकज अग्रवाल आईण् एण् एसण् ने आशीर्वाद दिया। ब्यूरो के महानिदेशक श्री अलिंद चंद्रा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और उपमहानिदेशक श्री ई देवेंद्र ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इसका वेबसाइट आई एस 16500#2012 है।

संस्थान ने सन् 2008 से सन् 2015 तक विशेष व्याख्यान और कार्यशालाएँ आयोजित की। 17 सितंबर, 2011 को एक संगोष्ठी का आयोजन किया जिसमें केंद्रीय हिन्दी निदेशालय की पूर्व निदेशक डॉ. पुष्पलता तनेजा, भारतीय जनसंचार संस्थान के डॉ. रामजी लाल जांगिड, जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर तथा सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. गंगाप्रसाद विमल आदि ने सक्रिय भाग लिया। 5 अक्टूबर 2013 को गुड़गाँव में विद्यालयों के अध्यापकों के लिए देवनागरी लिपि, वर्तनी और हिन्दी व्याकरण पर कार्यशाला आयोजित की गई। इसमें वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष और भाषाविद् प्रो. केशरी लाल वर्मा, नागरी लिपि परिषद के महासचिव डॉ. परमानंद पांचाल, के आई आई टी ग्रुप ऑफ कॉलेजेज़ के महानिदेशक डॉ. श्याम सुंदर अग्रवाल और निर्वाचन आयोग के निदेशक (तकनीकी) और कंप्यूटर वैज्ञानिक श्री वी.एन.शुक्ल ने अपने व्याख्यान दिए तथा प्रो. कृष्णकुमार गोस्वामी ने अध्यापकों के साथ शैक्षिक चर्चा-परिचर्चा की और उन्हें देवनागरी लिपि और वर्तनी की मानकता का परिचय दिया। 27 सितंबरए 2016 को के आई आई टी वर्ल्ड स्कूलए पीतमपुराए दिल्ली के सहयोग से दिल्ली के स्कूलों के हिन्दी अध्यापकों के लिए देवनागरी लिपि और मानक वर्तनी विषयक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष और डीनए कला संकाय प्रोफेसर हरि मोहन शर्माए हंस राज कॉलेज के डॉ महेंद्र कुमार और संस्थान के निदेशक प्रोफेसर कृष्ण कुमार गोस्वामी ने हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि के ऐतिहासिकए विकासात्मक और वैज्ञानिक पक्षों के बारे में व्याख्यान दिए। इसके अतिरिक्त  अध्यापकों के साथ मानक लिपि तथा वर्तनी की समस्याओं पर चर्चा.परिचर्चा भी हुई। अंत में संस्थान के अध्यक्ष सुविख्यात शिक्षाविद श्री बलदेव राज कामराह ने देवनागरी लिपि और हिन्दी वर्तनी के महत्त्व और प्रासंगिकता संबंधी अपने विचार प्रस्तुत करते हुए हिन्दी अध्यापकों को इस ओर सतर्कता और सजगता बरतने के लिए आह्वान किया। के आई आई टी वर्ल्ड स्कूल की उपाचार्य श्रीमती करुणा वर्मा तथा सलाहकार श्री एच के मुंजाल ने भी देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता पर अपने विचार रखे।

इस प्रकार विश्वनागरी विज्ञान संस्थान देवनागरी लिपि, वर्तनी, हिंदी भाषा का विकास सूचना प्रौद्योगिकी के सहयोग से निरंतर कार्य कर रहा है।

  प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी

महा सचिव और निदेशक

के आई आई टी केंपस, सोहना रोड, गुरुग्राम (हरियाणा) – 122 102