कविता : ख़्वाहिशें
कतरा-कतरा पिघल रही हैं
आहें तेरी यादों की ,
जी चाहे साँसों में भर लूँ
खुशबू तेरी चाहत की।
टकरा कर लहरों सी लौटें
आहट तेरी पायल की,
जी चाहे उर बीच सजा लूँ
धड़कन तेरी चाहत की।
अँगारों की सेज पे सोई
अर्थी तेरी चाहत की,
जी चाहे पलकों पे रख लूँ
ख़्वाहिश तेरी चाहत की।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”