प्राणमय बन जाओ
मधुर राग मधुर प्राणमय बन जाओ
बहती सुगन्धित मारूत बन जाओ
नया हास , नया मधुमास बन तुम
जीवन को पावन गंगा सा कर जांओ
यूँ निर्झरिणी बहती है सतत गति से
दूषित होकर विराम ले सदा रूकती है
जीवन का संकट भी ऐसा ही होता
पैर रख मौत कब प्राण को हरती है
मौन का वितान जब ओढ़ लेती हूँ
स्वीकृति से पट दिल के खोलती हूँ
छलक- छलक उठता मादक यौवन
रण -भेरी का बिगुल बजा देती हूँ
प्रिये तेरी मन व्यथा को चूम लिया
मन्द-मधु बयार सा शीतल कर दिया
पर पड़ी बंधन की बेड़ियाँ पगों में
उनने तेरी नजदीकी को दूर किया
प्रेम तेरा मादक सिहरन सा उठता
तोड़ कर बाँध सारे हो निर्भया छूता
हृदय की दिव्यता झरने सी झरती
रक्तिम आभा पान सुरा फीका लगता
— डॉ मधु त्रिवेदी