इंसानियत — एक धर्म ( षष्ठम भाग )
दरोगा श्रीवास्तव ने असलम की पूरी बात ध्यान से सुनी । एक सिपाही ने उसके पुरे बयान को कलम बद्ध किया और दरोगा के इशारे पर उस कागज पर असलम के हस्ताक्षर करा लिया ।
साथ ही यादव का बयान भी लिया गया । उसने भी असलम के बयान का समर्थन ही किया और आलम की धर्मान्धता का जमकर विरोध किया । इन दोनों सिपाहियों के बयान से यह तो साफ़ हो गया था कि मृतक द्वारा उकसाए जाने के खिलाफ भावावेश में असलम के हाथों आलम की हत्या हो गयी थी ।
असलम के इकबालिया बयान और यादव द्वारा उसके बयान का समर्थन किये जाने से पाण्डेय जी की नज़रों के सामने घटना पूरी तरफ स्पष्ट हो गयी थी ।
श्रीवास्तव के निर्देशानुसार असलम को हिरासत में लेने की औपचारिकता पूरी की गयी जबकि मुनीर की तलाश में पुलिस बालों को भेज दिया गया ।
फोरेंसिक विभाग के लोगों द्वारा अपना काम पूरा कर लिए जाने पर आलम के शव को एम्बुलेंस में लादकर पोस्टमोर्टम के लिए भेज दिया गया ।
एम्बुलेंस के निकलते ही मीडिया कर्मियों के कैमरों ने उसका पीछा करना शुरू कर दिया था । अपने अपने चैनलों को पर्याप्त मसाला देने के बाद सभी पत्रकारों ने श्रीवास्तव जी को घेर लिया । उनसे कुछ बताने का आग्रह करने लगे । उनके कई बार निवेदन करने के बाद कि ‘ अभी जांच चल रही है । कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी । ‘ पत्रकारों ने उन्हें घेरना जारी रखा । पत्रकारों को परे हटाते आखिर बड़े अधिकारी जैसे आये थे वैसे ही निकल गए ।
असलम और यादव भी अब पांडेयजी की जीप में पीछे बैठ चुके थे । कहने को तो असलम पुलिस की हिरासत में था लेकिन उसके साथ अपराधियों जैसा कोई भी व्यवहार नहीं किया जा रहा था । आखिर करते भी कैसे ? असलम सभी सिपाहियों और लोगों में काफी प्रिय था । अपने कर्तव्यपरायणता बहादुरी और हसमुख स्वभाव की वजह से वह अपने वरिष्ठों के बिच काफी पसंद किया जाता था ।
इधर अस्पताल में अकेले बैठी राखी अपने परिजनों का इंतजार कर रही थी । पाण्डेय जी को गए हुए लगभग एक घंटे से भी अधिक समय हो चुका था । राखी की निगाहें बार बार अस्पताल के मुख्य दरवाजे से टकराकर वापस आ जातीं और दरवाजे पर कोई परिचित चेहरा नजर न आने पर उस पर निराशा की परत और गहरी हो उठती ।
अस्पताल कर्मी और परिचारिकाएँ शुभ्र धवल गणवेश धारण किये शांति से मरीजों की तीमारदारी में लगे हुए थे । शांति के अथक प्रयास के बावजूद कोई न कोई मरीज रह रह कर अपनी कराह वातावरण में घोलकर शांति भंग करने का प्रयास करता नजर आता । अस्पताल का नजारा बडा ही हृदयद्रावक होता है और उसे लंबे समय तक झेलने के लिए काफी बहादुरी की जरूरत होती है । इन करुण दृश्यों के साथ ही रमेश के सलामती की खबर से वंचित राखी अब अपना साहस खोती जा रही थी ।
इधर जब से सुषमा ने अपने बेटे और बहू की गाड़ी के दुर्घटनाग्रस्त होने का समाचार सुना था वह लगातार फुट फूटकर रोये जा रही थी । दयाल बाबू उनका रुदन देखकर उन्हें हिम्मत बंधाते बंधाते खुद ही हिम्मत छोड़ रहे थे । उनके मुख पर भी असीम वेदना स्पष्ट देखा जा सकता था ।
रात गहरा गयी थी । शहर जानेवाली अंतिम बस भी अब वहां से निकल चुकी थी । मजबूर दयाल बाबू अपने पड़ोसी गुप्ताजी के घर पहुंचे और उन्हें पूरा समाचार बताते हुए उनसे अपनी मदद करने की गुजारिश की । बिना एक पल की भी देर किए गुप्ताजी अपनी गाड़ी लेकर उनके साथ शहर जाने के लिए तैयार हो गए ।
कुछ ही देर बाद गुप्ताजी की कार में बैठे दयाल बाबू और सुषमाजी रामनगर के जिला अस्पताल की दिशा में भागे जा रहे थे ।
कुछ ही देर में उनकी कार रामनगर के जिला अस्पताल के मुख्य दरवाजे से अंदर घुसती हुई बाहर विशाल पार्किंग में रुक गयी ।
कार रुकते ही सुषमा जी किसी की प्रतीक्षा किये बिना तेज कदमों से अंदर की तरफ बढ़ी । यही वह समय था जब राखी की व्याकुल नजरें अस्पताल के प्रवेश द्वार पर टिकी हुई थीं । सुषमा जी पर नजर पड़ते ही राखी के नयनों से आंसुओं की धारा फुट पड़ी जिन्हें उसने बड़े यत्न से अब तक संभाला हुआ था ।
मानव मन भी कितना विचित्र है । अकेलेपन का अहसास मानव को और कमजोर बना देता है लेकिन यही अकेलापन उसे मानसिक संबल भी देता है जिसकी वजह से ही राखी अब तक खुद को संभाले हुए खामोश थी । जब कि अब उसके माता पिता तुल्य उसके सास ससुर उसके सामने आ खड़े हुए थे अब वह खुद को संभालने में अपने आपको मजबूर पा रही थी । बिल्कुल लूटी पीटी किसी बेचारी सा रुदन करती राखी अपनी सास के कलेजे से लग रोकर अपना दिल हल्का करने लगी ।
अपनी बहू का यह करुण रुदन दयाल बाबू के सीने को जख्मी किये जा रहा था । आंसुओं की अधिकता के कारण उन्हें अब कुछ साफ नजर भी नहीं आ रहा था । किसी तरह गुप्ताजी के सहारे वह वहीं पड़ी कुर्सियों में से एक पर बैठे और सघन चिकित्सा कक्ष के बंद दरवाजे की तरफ देखते हुए रोने लगे । बड़ा ही करुण व मार्मिक दृश्य था ।
काफी देर तक रो लेने के बाद सुषमा जी ने अपनी बहू से पूरी हकीकत जाननी चाही । राखी ने उन्हें सभी बातें सिलसिलेवार तरीके से बताई और उस बहादुर सिपाही असलम की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए अपनी सास से उसे बचाने का अपना संकल्प बता दिया ।
उसकी बात सुनते ही सुषमा जी का दिल एक बारगी कांप उठा । वह बड़े आश्चर्य से अपनी बहू के मुख को निहारती ही रह गईं । इतनी बड़ी बात उसने किस आसानी से कह दिया था । अपनी बहू के इंसानियत के जज्बे की कद्र करते हुए सुषमा जी की नजरों में उसके प्रति असीम स्नेह और सम्मान अब स्पष्ट दिख रहा था । जबकि दयाल बाबू की निगाहें शून्य में देखते हुए कुछ सोचने लगी थीं । विचारों के अंधड़ उनके दिमाग में चल रहे थे लेकिन उसकी स्पष्ट छाप उनके चेहरे पर प्रतिबिम्बित हो रही थी । तभी सघन चिकित्सा कक्ष के दरवाजे के खुलने की आहट ने उनका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया ।