कविता : लाल बत्ती
हमसे पूछो कि कौन रही? लाल बत्ती,
एक दागी विधायक—————
जब अपने फार्म हाऊस पे,
किसी अबला का रेप कर रहा था,
तो उसकी चीख और सिसकी सुन के,
किसी पत्थर का कलेजा भी पिघल जाता,
लेकिन बाहर——————
इस होते हुये बलात्कार पर भी मौन रही लाल बत्ती।
दंगे हुये,मौते हुई
सलमा,रजिया,गुड़िया,लक्ष्मी
सभी तो मरी लेकिन इन्हें भी,
यादव,पंडित और मुसलमान कहा गया,
बहुत पीड़ा हुई,
जब एक वर्ग को बचाके स्याह रात को,
सरकारी दंगे हुये,
कान पे इसके जूँ तलक न रेंगी,
बल्कि ये जिस गाड़ी मे लगी थी उसी में बैठे मंत्री जी,
शराब के पैग छक रहे थे———-
और लखनऊ की तरफ जा रही थी लाल बत्ती।
थाने बिके,
न्याय गया तेल लेने,
शहर के होटलो मे महिना बंधा,
जूआ और जिस्मफ़रोशी हुई,
ऐस.पी.,डि.यम.,जज सभी तो थे,
लेकिन ये कही और बजा रहे थे————
एक आम आदमी के न्याय और उसके उम्मीद की लाल बत्ती।
सच इसे अब उतर जाना चाहिये,
क्योंकि जब मै इसे तकता हूँ तो लगता है,
कि जैसे बहुत सारी बेगुनाह लाशो के खून से,
रंगी है एै”रंग”————–
हमारे देश की हर लाल बत्ती।
— रंगनाथ द्विवेदी