महर्षि दयानन्द के सितम्बर 1876 में लखनऊ प्रवास में रईस ब्रजलाल के 26 प्रश्न व ऋषि द्वारा उनके दिये लिखित सटीक उत्तर
ओ३म्
रामलीला देखने में हजार हत्याओं के समान दोष हैः ऋषि दयानन्द
ऋषि दयानन्द ने दक्षिण भारत में आर्यसमाज की स्थापना के बाद मई सन् 1876 में उत्तर प्रदेश आये थे और फर्रुखाबाद, जौनपुर, अयोध्या होते हुए लखनऊ पहुचें थे। लखनऊ में रहकर स्वामी जी ने एक बंगाली बाबू से अंग्रेजी सीखना भी आरम्भ किया था। इस सम्बन्ध में इण्डियन मिरर, कलकत्ता तथा बिहारबन्धु, पटना में समाचार भी प्रकाशित हुए थे। लखनऊ में प्रवास के दिनों में वहां के रईस ब्रजलाल की एक विस्तृत प्रश्नमाला उन्हें प्राप्त हुई थी जिसमें 26 प्रश्न थे। इन प्रश्नों के उत्तर ऋषि ने दिये थे। प्रश्न व उत्तर दोनों ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें सभी ऋषि भक्तों को जानना चाहिये। प्रश्न व उत्तर पं. लेखराम रचित जीवन चििरत में उपलब्ध हैं जिन्हें यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
प्रश्न 1- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र किस प्रकार हैं? और किसने बनाये हैं? उत्तर- कर्मों की दृष्टि से चारों वर्ण ठीक है और लोक व्यवहार से (आजकल जैसे लोक में प्रचलित हैं, वैसे-सम्पादक) ठीक नहीं हैं अर्थात् जो जैसा कर्म करे वैसा उसका वर्ण है। उदाहरणाार्थ जो ब्रह्म विद्या जाने वह ब्राह्मण, जो युद्ध करे वह क्षत्रिय, जो लेन-देन, हिसाब-किताब करे-वह वैश्य, और जो सेवा करे वह शूद्र है। यदि ब्राह्मण, क्षत्रिय या शूद्र का काम करे तो ब्राह्मण नहीं। सारांश यह कि वर्ण कर्मों से होता है, जन्म से नहीं। जन्म से यह चारों वर्ण (वर्तमान अवस्था में) लगभग बारह सौ वर्ष से बने हैं। (माने जाने लगे हैं-सं0) जिसने बनाये उसका नाम इस समय स्मरण नहीं परन्तु महाभारत आदि के पीछे बने हैं। (लगता है कि ऋषि दयानन्द जी को जन्मना वर्ण वा जाति व्यवस्था प्रचलित करने वाले व्यक्ति का नाम पता था परन्तु उत्तर लिखते समय वह स्मरण नहीं रहा।-मनमोहन)।
प्रश्न 2- क्या ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से और क्षत्रिय भुजा से उत्पन्न हुए हैं? उत्तर – इस (वेद वाक्य) का अभिप्राय यह है कि जैसे शरीर में मुख श्रेष्ठ है, ऐसे सब वर्णों में ब्रह्म का जानने वाला (ब्राह्मण) श्रेष्ठ है। इसी कारण कह दिया कि ब्राह्मण मुख से हुआ है, इसी प्रकार और वर्णों का समझ लो। प्रश्न 3- ब्राह्मण यज्ञोपवीत किसलिये रखते हैं? उत्तर- यज्ञोपवीत केेवल विद्या का एक चिन्ह है। प्रश्न 4- कोई कर्म करना चाहिये या नहीं? उत्तर- उत्तम कर्म करना चाहिये। प्रश्न 5- उत्तम कर्म कौन से हैं? सत्य बोलना, परोपकार करना आदि उत्तम कर्म हैं। प्रश्न 6- सत्य किसे कहते हैं, उत्तर- जिह्वा से सत्य बोलना, जो मन में होवे वह वाणी से कहना या ऐसा विचार करके कहना जो कभी झूठ न हो। प्रश्न 7- मूर्तिपूजन कैसा है? बुरा है। कदापि मूर्तिपूजन न कराना चाहिये। इस मूर्तिपूजा के कारण ही तो संसार में अन्धकार फैला है। प्रश्न 8- बिना मूर्ति के किसका ध्यान करें और किस प्रकार करें? उत्तर- जैसे सुख-दुख का ध्यान मन में होता है वैसे परमेश्वर का ध्यान मन में होना चाहिये, मूर्ति की कुछ आवश्यकता नहीं। प्रश्न 9- क्या कर्म करना चाहिये? उत्तर- दो समय संध्या करें और सत्य बोले औरे जो श्रेष्ठ कर्म परोपकार के हों वह करें। प्रश्न 10- संध्या दो समय करनी चाहिये या तीन समय? उत्तर- केवल दो समय, प्रातः तथा सायं, तीन समय नहीं। प्रश्न 11- बार-बार या प्रत्येक बार मन्त्र जपना या परमेश्वर का नाम लेना चाहिये या नहीं? और जैसे ब्राह्मण लाख, दो लाख मन्त्र या परमेश्वर के नाम का जाप और पुरश्चरण करते हैं वह ठीक है या ठीक नहीं है? उत्तर- पहचानना चाहिये। (आगे चलकर 14 वें प्रश्न के उत्तर में यही बात स्पष्ट करके बताई कि अदृश्य परमेश्वर को, सुख-दुःख की भांति पहचाना, या अनुभव किया जा सकता है-सम्पादक)। जप और पुरश्चरण करना कुछ आवश्यक नहीं।
प्रश्न 12- परमेश्वर का कोई और रूप है या नहीं? उत्तर- उसका कोई रूप और रंग नहीं है, वह अरूप है। और जो कुछ इस संसार में दिखलाई देता है, वह सब उसी का (बनाया हुआ) रूप है, क्योंकि केवल एक अर्थात् वही एक सबका बनाने और उत्पन्न करने वाला है। प्रश्न 13- ईश्वर संसार मंे दिखलाई क्यों नहीं देता? उत्तर- दिखलाई देता तो कदाचित् सब कोई अपना मनोरथ पूर्ण करने को कहते और उसे तंग करते। दूसरे, जिन तत्वों से मनुष्य का यह शरीर बना है उनसे उसका देखना असम्भव है। तीसरे जिसने जिसको उत्पन्न किया उसको वह क्यों कर देख सकता है। प्रश्न 14- जब दिखाई नहीं देता तो किस प्रकार उसको पहचानें? उत्तर- दिखलाई देता तो है? अर्थात् मनुष्य, पशु, वुक्षादि, ये सब वस्तुएं जो संसार में दिखलाई देती हैं, उन सबका कोई एक अर्थात् वही एक बनाने वावला प्रतीत होता है, यही उसका देखना है और जैसे सुख, दुख पहचाना जाता है वैसे ही उसको पहचानें। प्रश्न 15- ब्रह्म हम में और सब में है या नहीं? उत्तर- सबमें है और हम में भी है। प्रश्न 16- किस प्रकार विदित हो? उत्तर जिस प्रकार दुःख-सुख का प्रभाव मन में विदित होता है उसी प्रकार वह भी विदित हो सकता है। प्रश्न 17- सब स्थानों पर (ईश्वर) एक समान है या न्यूनाधिक? उत्तर- सर्वत्र एक समान है, परन्तु यह बात भी है कि जिसके आत्मा में उस चेतन का जितना प्रकाश है अर्थात् जितना जिसको ज्ञान है, उतना उसको अनुभव होता है।
प्रश्न 18- देव किसको कहते हैं? उत्तर- जो मनुष्य विद्यावान् और बुद्धिमान पण्डित हो उसको देव कहते हैं। प्रश्न 19- रामलीला देखना दोष है? उत्तर- हां दोष है। हजार हत्या के समान दोष है। और इसी प्रकार मूर्तिपूजा करना हजार हत्या के समान पाप है, क्योंकि बिना आकृति के प्रतिबिम्ब नहीं उतर सकता और जबकि उस की आकृति नहीं तो मूर्ति कैसी? यदि किसी का फोटोग्राफ से या और किसी प्रकार यथार्थ प्रतिबिम्ब उतार कर संस्मरण और देखने के लिये सम्मुख रखा जाये तो वह ठीक है परन्तु उसकी अर्थात् ब्रह्म की मूर्ति और आकृति बनाना और प्रतिलिपि की प्रतिलिपि बनाकर कुछ का कुछ कर देना नितान्त अशुद्ध और अनुचित है। प्रश्न 20- संस्कृत भाषा कब से है और उसको अच्छा क्यों कहते हैं? संस्कृत भाषा सदा से है और अत्यन्त शुद्ध है। इसके समान कोई भाषा अच्छी नहीं है। उदाहरणार्थ यदि फारसी और अंग्रेजी में केवल ‘ब’ प्रकट किया चाहें (ध्वनि का संकेत देना चाहें) तो शुद्ध (दूसरी ध्वनियों से रहित) प्रकट नहीं किया जा सकता अर्थात् फारसी में (‘ब’ के स्थान पर) ‘बे’ और अंग्रेजी में ‘बी’ है, परन्तु जिसमें और कोई (और कोई ध्वनि) सम्मिलित न हो वह प्रकट करने का गुण केवल संस्कृत भाषा में ही है। प्रश्न 21- वेद में परमेश्वर की स्तुति है तो क्या उसने अपनी प्रशंसा लिखी? उत्तर- जैसे माता-पिता अपने पुत्र को सिखाते हैं कि माता-पिता और गुरु की सेवा करो उनका कहा मानो। उसी प्रकार भगवान् ने सिखाने के लिये वेद में (स्तुति करना) लिखा है।
प्रश्न 22- भगवान् का जब स्वरूप और शरीर नहीं तो मुख कहां से आया कि जिससे वेद कहा? उत्तर- भगवान् ने चार ऋषियों-अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा के हृदय में प्रकाश करके वेद बताया। प्रश्न 23- अब विदित हुआ कि चार वेद उन चार ऋषियों के बनाये हुए हैं? उत्तर- नहीं, नहीं, भगवान् के वेद बनाये और कहे हैं क्योंकि वे चारों कुछ पढ़े न थे और न कुछ जानते थे। उनके द्वारा आप ही कहे हैं। प्रश्न 24-भगवान् ने उनके हृदय में किस प्रकार आकर वेद कहा? उत्तर- जैसे कोई मनुष्य पित्त व सन्ताप में आप ही आप बोलने लगता है, उसी प्रकार उस भगवान् ने उन चारों के घट में और जिह्वा में प्रकाश करके कहा और उन्होंने उसकी शक्ति से विवश हो कर कहा। इसलिए प्रकट है कि भगवान् ने वेद कहे हैं। प्रश्न 25- जीव एक है या अनेक? उत्तर- जीव का प्रकार एक है और जातियां अर्थात् योनियां अनेक हैं। उदाहरणार्थ, मनुष्य की एक जाति है और पशु की दूसरी जाति है। इसी प्रकार और जातियां भी समझ लो। प्रश्न 26- यह जीव प्रत्येक देह में जाता है और छोटा बड़ा हो जाता है? उत्तर- जैसे जल में जो रंग मिला दोगे वही रंग हो जावेगा, इसी प्रकार जिस देह में यह जीव जावेगा वैसा ही उसका रूप, रंग और छोटा-बड़ा देह होगा परन्तु जीव सबका एक-सा (एक ही प्रकार का) है, जैसा चींटी का वैसा ही हाथी का।
ऋषि दयानन्द 1 नवम्बर, सन् 1876 को लखनऊ से शाहजहांपुर प्रस्थान कर गये थे। ऋषि दयानन्द ने 26 प्रश्नों के जो उत्तर दिये हैं वह अनेक शास्त्र व ग्रन्थों को पढ़कर भी विदित नहीं होते। हमारा सौभाग्य है कि हमें यह सब उत्तर विदित हैं। हम इन उत्तरों में निहित गम्भीरता को जानते हैं और उनसे सन्तुष्ट हैं। हमारा अनुमान है कि जो भाई बाल्मीकि रामायण, गीता व महाभारत पढ़ते हैं, पुराणों व अन्य मत-मतान्तरों के ग्रन्थों को पढ़ते हैं, उन्हें भी इन प्रश्नोत्तरों में निहित ज्ञान उपलब्ध नहीं होता। हम तो यह अनुभव करते हैं कि इन प्रश्नोत्तरों को एक लघु पुस्तक में प्रकाशित किया जाना चाहिये जिससे इनका अधिक से अधिक प्रचार हो। हम आशा करते हैं कि पाठक इस सामग्री से कुछ न कुछ अवश्य लाभान्वित होंगे। हमारा एक संस्मरण है। श्री विष्णु प्रभाकर हिन्दी के प्रमुख व प्रसिद्ध साहित्यकार हुए हैं। उन्होंने ऋषि दयानन्द का एक विवेचनात्मक लघु जीवन चरित लिखा है। इस जीवन चरित को लिखते समय लगभग 25 वर्ष पूर्व उन्होंने हमारे मित्र प्रा. अनूप सिंह जी से पूछा था कि रामलीला देखने में हजार हत्याओं के समान पाप होता है, यह बात ऋषि ने कहां लिखी वा कही है? अनूप सिंह जी ने यही प्रश्न हमसे किया? हमने ढूंढा और हमें यह ऋषि वचन पं. लेखराम रचित इस प्रश्नोत्तरी में मिला जिसे हमने जीवन चरित सहित अनूपसिंह जी को दिया और उन्होंने उससे श्री विष्णु प्रभाकर जी को अवगत करा दिया। आज हमारे पाठक भी ऋषि के इन वचनों से से परिचित हो रहे हैं इसकी हमें प्रसन्नता है। इसी के साथ लेख को विराम देते हैं। ओ३म् शम्।
–मनमोहन कुमार आर्य