ग़ज़ल : आग दरिया मे’भी लगा देना
बहर २१२२ १२१२ २२
काफ़िया- आ
रदीफ़- देना
ख्वाब आए नहीं जगा देना।
प्यास दिल की मिरे बुझा देना।
रात आकर मुझे सताती है
नींद आती नहीं सुला देना।
गैर की बाँह का सहारा ले
आप उठना मुझे गिरा देना।
देखने हैं मुझे सितम तेरे
याद आकर मुझे भुला देना।
राज तुम तो कभी न ऐसी थी
मिट रहा हूँ मुझे दवा देना।
राह तकते उठे जनाज़ा जब
कब्र पे आ दिया जला देना।
लोग बातें करें वफ़ाओं की
आग दरिया में’ भी लगा देना।
डॉ.रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”