“सुकमा, सादर श्रद्धांजलि”
माँ, बाप, पत्नी, भाई-बहन व बच्चों के साथ देश रो रहा है, शहीदों के पार्थिव को कंधे पर उठाए, साथ ही असमय पर नमन, वंदन और सादर श्रद्धांजलि दे रहे हैं, यही हमारा संस्कार है हम ढ़ो रहे हैं रो रहे हैं कुढ़ रहे हैं, इस अति पुरातन अनसुलझे हुए निर्दयी प्रश्न के एक बार फिर उठ जाने पर जिसे गैरों ने नहीं अपनों ने उठाया है रक्तरंजित कुंठा की होली खेलकर। पर अब और नहीं, न यह त्योहार है न ब्यवहार है, यह क्रूरता का घृणित रोग व्यविचार है, जिसकी शल्य क्रिया बहुत जरूरी है, पूरे शरीर को सुरक्षित करने हेतु सड़ें हुए अंग को काटना ही पड़ता है…….इसी पर सुकमा अमर शहीदों को सादर समर्पित एक कुंडलिया……ॐ जय मा भारती……….
सुकमा तुझको देखकर, बहता झर झर नीर
हृदय रो रहा देश का, दुसह वेदना पीर
दुसह वेदना पीर, उठी है माँ की छाती
मेरे बीर सपूत, हने हो तुम कुलघाती
कह गौतम कविराय, मिलेंगे तुझसे रणमा
रुदन ब्यर्थ नहि जाय, तांडव होगा सुकमा॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी