दोहा-मुक्तक
मुश्किल तो होती डगर, चली हुई आसान
कठिन मान लेते जिसे, आलस में नादान
बड़ी चूक करते सदा, अपनी मंजिल दूर
पाँव पसारे सो रहे, वे बिस्तर पादान॥-1
कठिन मानकर जूझते, शेर बहादुर बीर
रण में कहाँ विलाशिता, कहती है तस्वीर
आँख उठाकर देख लो, मुश्किल पहरा पैर
अमर शहीदों को नमन, पथ बेंड़ी जंजीर॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी