#लघुकथा_प्रवृत्ति
#लघुकथा_प्रवृत्ति
आज पाचवीं बार विद्यालय की गिरी हुई कोट (खेल मैदान की दीवार) को दीर्धविश्रांति में वह ठीक कर रहा था. तभी साथी शिक्षक सुदेश ने पास आ कर कहा,” सर जी ! यह सब महेश का कियाधरा है. वह स्कूल के छात्रों को आप के खिलाफ उकसा कर पत्थर की कोट गिरवा देता है. ताकि छात्र इस शार्टकट के रास्ते से मैदान में आ सकें.”
” जी. आप ने उन्हें ऐसा करते हुए देखा है ?”
” मैं ने तो नहीं देखा है.” सुदेश ने कहा,” कक्षा में छात्रों से पूछा था. वे ही बता रहे थे. महेश सर ने कहा था.”
” अच्छाअच्छा.”कहते हुए वह पत्थर जमा कर कोट दुरूस्त करता रहा.
” जी हां. मैं सही कह रहा हूं.” सुदेश बोला, ” वैसे भी आप स्कूल के लिए बहुत काम करते हैं. वह आप का काम बिगाड़ देना चाहता है.ताकि आप बदनाम हो जाए. इसलिए आप को महेश के खिलाफ एक्शन लेना चाहिए.”
” किस बात के लिए ?”
” वह हर बार कोट गिरवा कर शासकीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाता हैं.”
” अच्छाअच्छा,” उस ने जमीन से दूसरा पत्थर उठा कर कोट पर रखा, ” मैं एक्शन लूंगा, आप गवाही देंगे.”
” हांहां, क्यों नहीं. आप प्रधानाध्यापक है. आप की तरफ तो बोलना पड़ेगा.” कह कर सुदेश उठा,” सर जी, मुझे बच्चों का मूल्यांकन करना है. चलता हूं. फिर जैसा आप कहेंगे वैसा करूंगा.”
” ठीक है, .” कह कर उस ने पत्थर उठाया और कोट पर जमा दिया.
तभी उसे याद आया. सुबह महेश कह रहा था,” सर जी ! सुदेशजी से बच कर रहना. वो पूरा कामचोर, मक्कार व पूरा नारदमुनि है. आप को और मुझ को लड़ा सकता है.”
उस के हाथ काम करतेकरते रुक गए.