वृद्धावस्था :एक अन्तहीन सूनापन
दूर तलक अकेलापन
अन्तःतल तक
ध्वनि रहित
रिक्तता
स्नेह -लगाव का अभाव
प्रेम की
लालसा
बेबस और लाचार
पथराई आँखों से
खोज केवल
मात्र
सहारे की
जिसे बना अबलम्ब
जीवन नैया के
भवसागर से
तर सके
आत्म-चीत्कार , आत्म-वेदना
हार मानने लगती
तब,
बुढ़ापा भार बोझिल बन
अन्तहीन गहराई की ओर
धकेल
गर्त में ले जाता
जहाँ सोचने की सीमा
समाप्त
हो जाती
चेतना कोमा
की स्थिति
मे होती है
आँखों की कोरों तक फैला
अपनों का
भाव -अभाव
जन्म देता है
सूनेपन को
तब
आभास होता
कि सत्य केवल रिश्तों
का होना नही
अपितु ढाल बन के
लड़खड़ाते
कदमों का अवलम्बन
बनना है
डॉ मधु त्रिवेदी