ग़ज़ल
थोक में गर नहीं तो फुटकर दे
चंद खुशियाँ मेरे मुक़द्दर दे
जिस्म से अब थकान बोलती है
आज खारों का सही बिस्तर दे
जब नज़र में हो सिर्फ़ उर्यानी
रूह के पैरहन को अस्तर दे
मैंने शाख़ों पे उड़ लिया काफ़ी
अब उड़ानों को मेरी अंबर दे
यूँ न मुझको हथेलियों में समेट
दे सके गर तो मुझको पैक़र दे
ये फ़कीरी तो बख़्श दी मौला
हाथ फैला सकूँ वो इक दर दे