गजल
कम भी नहीं है हौसले गिर भी पड़ी तो क्या हुआ
है जिन्दगी के सामने बाधा खड़ी तो क्या हुआ।
चल दूँ जिधर खुद रास्ता मिलता मुझे ही जाएगा
टूटी अगर रिश्तों की इक नाजुक कड़ी तो क्या हुआ।
मैं ढूँढ लूँगी राह को हुनर मेरा मैं जानती
वो साथ दे या बाँध ही दे हथकड़ी तो क्या हुआ।
सर पे बिठा करके रखा उस बेवफा को आज तक
सारी हदों को तोड़कर फिर मैं लड़ी तो क्या हुआ।
वो गीत सारे प्यार के डूबे ग़मों की बाढ़ में
फिर बारिसों की लग पड़ी रोती झड़ी तो क्या हुआ।
इक भूल ने ही जिन्दगी जीना हमें सीखा दिया
चोटें समय के मार की खानी पड़ी तो क्या हुआ।
ताकत यही मैं टूटकर बिखरी नहीं हूँ आज तक
आराम की ना आजतक आयी घडी तो क्या हुआ।
— सुचि संदीप, तिनसुकिया (असम)