कविता : यादों के सहारे
खोया प्यार
ढूंढने में बीत जाती
उम्र आँखों की
दरबदर खोजता
मजनू बन
प्रकृति की बहारों में
मुलाकाते होती थी
गवाह बने वृक्षों तले
डालियों पकड़े
इंतजार
पावों के छालों की परवाह
पुष्प ने बिछाए
कारपेट
आज बहारे फिर छा गई
मगर तुम खो गई
सोचता हूँ
क्या इश्क भी बूढ़ा होता ?
शायद कभी नहीं
पहला प्यार
शायद ,हमेशा जवान होता
बीती यादों के सहारे
— संजय वर्मा ‘दृष्टी ‘
मनावर