कविता : सपनों का बाज़ार
नैतिकता का आधार सुनायी देता है
जीते जी सब निष्काम दिखायी देता है
जीवन का सारांश नहीं कुछ भी साहब
दुनिया अब बेजान दिखायी देता है।।
नैतिकता का आधार…..
रिश्ते नाते सब महज किताबी किस्से
पैसों का झंकार सुनायी देता है
कितना भी मजबूत डगर हो रिस्तों का
सब केवल बेईमान दिखाई देता है।।
नैतिकता का आधार…..
माँ से बढ़कर कुछ भी नहीं पुराणों में
फिर क्यूँ अब ममता का ब्यापार दिखायी देता है
कसमें खाते हैं जो जमीर, ईमानों की
क्यूँ इनके घर श्मशान दिखायी देता है।।
नैतिकता का आधार…..
सपनों की बातें हैं कहाँ हकीकत में
सियासत अब हर बार दिखायी देता है
माँ, बाप, बहन, पत्नी, भाई सब आहात हैं
क्या अब भी इनमे जज्बात दिखायी देता है।।
नैतिकता का आधार….
— आर्यन उपाध्याय ऐरावत