बाल कहानी

बाल कहानी : शिवम की वापसी

शिवमशिवमकहाँ है वो -?’ एक तेज़ आवाज़ वातावरण में गूंज गई|

शिवम के दादा जी आँगन में खड़े छत की ओर देखते हुए फिर आवाज़ लगाते है| आवाज़ सुनकर  अबकी सफ़ेद साड़ी में लिपटी एक कोमल काया सर झुकाए जाती हैउसे देख दादा जी ज़ोर से बोले – ‘बहू, कहाँ है शिवमआज वो मेरे हाथ से नहीं बचेगामैं जानता हूँ अभी तक शिवम छत पर पड़ा सो रहा होगाअरे आज से छुट्टियाँ शुरू हो गई तो क्या पढ़ाई छोड़ देगापता नहीं अगली बार भी पास होगा या नहीं (खुद का हाथ झिड़कते हुए कहते हैपिछली बार फेल होने पर भी शरम नहीं आई कि सबेरे जल्दी उठेपढ़ेउसका पिता कितना अच्छा था पढ़ाई मेंमेडलोंसेटीफिक्टों से एक बक्स भर गया है (अचानक नम हो आई आँखों को जल्दी से झपका कर आँसुओ  को आँखों के पीछे धकेलते है) मैं अभी उसकी अक्ल ठिकाने लगाता हूँ|’

बहू सर झुकाए सब सुनी जा रही थी मानो वो उन्ही पर नाराज़ हो रहे होवो देखती है कि दादा जी अब सीढ़ियों की तरफ बढ़ रहे थे|

पिताजीरुकिए मैं ऊपर जाकर देखती हूँक्या पता शिवम पढ़ रहा हो|’

नहीं बहूतुम अब उसे नहीं बचाओगीमैं जानता हूँ शिवम अभी भी पड़ा सो रहा होगाधूप आँगन तक भर आई पर उसकी नींद..|’ कहते कहते अब तक दादा जी सीढ़ियो तक पहुँच गए थे|

उनको जाते देख शिवम की माँ जल्दी से अंदर के कमरे की तरफ लगभग दौड़ जाती है|

रानूसुन|’

नौ वर्षीय रानू किताब से सर हटा कर अपनी माँ के घबराए चेहरे की तरफ देखता है|

क्या हुआ माँ?’

सुन बेटा जरा दूसरी तरफ से छत पर चुपके से चढ़ जा और शिवम को जगा के बता दे कि दादा जी बहुत गुस्से में छत पर रहे हैजल्दी जा कर बता दे नहीं तो खामखा ही घर में हँगामा खड़ा हो जाएगा|’

अच्छा माँ|’ रानू झट से कमरे से निकल गया|

रानू दौड़ते हुए बगल के घर की छत से अपनी छत पर जाता है| वो देखता है कि सब से बेख़बर उसका बड़ा भाई शिवम खाट पर औंधा लेता अभी भी सो रहा था|

शिवम भैया, भैया -|’शिवम को लगातार वो झंझोरता रहा|

ऊँह, क्या है रानूअभी सोने दे ना|’ हल्की सी आँख खोलकर रानू को देख कर बोलता है|

अरे भैया जल्दी उठोदादा जी यहीं रहे हैमाँ कह रही थी कि वे बड़े गुस्से में हैजल्दी से उठो भैया वरना वे तुमको मारेंगे|’

अबकि रानू के शब्दों ने उसकी नींद एक झटके में ही उड़ा दी| उठते ही उसने पहले रानू की तरफ देखा फिर चढ़ते हुए सूरज को| अब गर्मी के कारण नहीं बल्कि दादा जी के डर से उसके पसीने छूटने लगे थे| वह जानता था कि वैसे तो दादा जी उसे बहुत चाहते है लेकिन पढ़ाई केमामले में वे बड़े सख्त है और कहीं मास्टर जी ने मेरी परीक्षा के परिणाम तो नहीं कह दिए उनसे, ये सोच कर ही वो काँप उठा ?

दादा जी धीरे धीरे सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे| यूँ तो सत्तर की उम्र में भी वे 50 की उम्र वालों जैसा शारीरिक मादा रखते थे लेकिन घुटनों के दर्द के कारण थोड़ा चलने फिरने को मजबूर थे| एक-एक सीढ़ी वे बड़ी मुश्किलों से चढ़ रहे थे|

उनके आने की आहट कानों में पड़ते ही शिवम एक दम से उठ खड़ा हुआ और छत के दूसरे किनारे की ओर बढ़ गया| डर के मारे उसके तन में झुरझुरी सी छूट रही थीउसके हाथ पैर ठंडे पड़ गए थे|

शिवम जल्दी जल्दी सीढ़ी उतरने लगा कि सहसा ही उसका पावँ लड़खड़ा गया और दूसरे क्षण ही उसकी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा| उसे केवल एक आखिरी वाक्य रानू का सुनाई पड़ा – ‘माँदादा जी भैया गिर गया|’

चारों ओर विशाल मैदान पड़ा था पर हरियाली नाम मात्र की भी नहीं थी| शिवम मैदान में दौड़ता जा रहा थाउसे लग रहा था कि जैसे कोई उसका पीछा कर रहा है| दौड़ते दौड़ते शिवम चारों ओर देखने लगता है| उसने देखा कि वह एक ऐसे स्थान में आया जहाँ ढेरों कुर्सियाँ बिछी हुई थी| लोग धीरे धीरे करके उन कुर्सियों पर चुपचाप बैठते जा रहे थे| उसके सामने कुछ ऊँचा सा स्टेज सा बना था| लग रहा था जैसे वहाँ कोई आने वाला है जिसका ये सभी लोग इंतज़ार कर रहे है| तभी शिवम को लगा जैसे उन लोगों की भीड़ में कुछ जाने पहचाने चेहरे थे| शिवम रुक कर चारों ओर देखता है कि सहसा उसकी नज़र एक वृद्ध औरत पर टिक जाती है| वह भाग कर उस वृद्ध औरत के पास जाता है|

काकीकाकी -|’

पर उसके चेहरे के सभी भाव सपाट थे|

काकीपहचाना नहींमैं शिवमजब मैं छोटा सा था तब तुम हमारे घर आती थी पर बाद में माँ ने बताया की तुम बहुत दूर चली गई हो जहाँ पिताजी गए है|’

वह फिर भी चुप रही और एक टक सामने की ओर देखती रही|

काकी तुमने मेरे पिताजी को देखा है कहींमैं उन्हें ही  खोज रहा हूँ|’

वह चुप रही पर तभी अकस्मात शिवम की नज़र दूसरी ओर चली गई जहाँ उसी के उम्र का एक लड़का किनारे बैठा था|

गणेशीतुम यहाँ क्या कर रहे होअरे ऐसे क्या  देख रहे होमैं शिवम तुम्हारा दोस्तयाद है जब स्कूल से भागकर हम दोनों जामुन खाने कुएँ के पास वाले पेड़ पर चढ़ गए थे तो एक दिन तुम्हारा पैर फिसल गया  और तुम कुएँ में गिर गए  – अच्छा ये बताओ कि तुमने मेरे पिताजी को देखा है कहीं?’

गणेशी को चुप देख शिवम को कुछ अच्छा लगा| देखते देखते सभी कुर्सियाँ भर गई| सभी सामने देखने लगे| शिवम भी उस ओर देखता है| उसे लगने लगा कि वहाँ कोई आने वाला है|

फिर शिवम अपने बैठने के लिए कुर्सी ढूँढने लगा कि तभी उसने देखा कि पीछे की कुर्सी पर उसके पिता जी बैठे है| शिवम दौड़ता हुआ उनके पास पहुँच गया|

पिताजीपिताजी -|’ शिवम अपने पिता के पास गया| ‘पिताजी मैं आपको कब से ढूंढ रहा थाआप कहाँ थेजानते है मैं, माँ, दादाजी और रानू सभी आपको बहुत याद करते रहते हैआप घर क्यों नहीं आतेक्या आप हमसे नाराज़ हैपिताजी आप जल्दी से घर  जाइए नहीं तो आप मुझे अपने पास रख लीजिएस्कूल में मास्टर जी तो घर पर दादाजी मुझे बहुत डाँटते है और मुर्गा भी बनाते है|’

बेटे तुम यहाँ नहीं रह सकते|’ शिवम के पिताजी धीरे से बोले|

क्यों नहीं रह सकता?’

क्योंकि बेटेयहाँ तुम्हें अभी नहीं आना है|’

लेकिन पिताजीमैं घर वापस जाऊँगा तो दादा जी मुझे फिर स्कूल भेजेंगे और वहाँ मास्टर जी मारते हैमुझे यहीं रख लो पिताजी|’

बेटा शिवमतुम्हें घर जाना ही होगा तुम्हारी माँ, दादाजी और रानू तुम्हें बहुत चाहते है और फिर तुम्हें तुम्हारे दादाजी इसलिए डाँटते है क्योंकि तुम पढ़ाई नहीं करते और लगातार तुमको असफल देख उन्हें बहुत दुख पहुँचता हैवे तुम्हें बड़ा आदमी बनता देखना चाहते हैशिवम मेरे बेटे क्या तुम अपने दादाजी और मेरा सपना पूरा नहीं करोगे!’

शिवम चुपचाप खड़ा रहा| सामने स्टेज पर नीली रौशनी बढ़ती जा रही थी|

शिवमतुम अपने पिता के अच्छे बेटे हो तो वही करो जो तुम्हें तुम्हारे दादा जी कहते हैवे तुम्हें बहुत चाहते है मैं भी तुम्हे बहुत चाहता हूँ  पर अभी तुम जाओ बेटा और अपने पिता का अधूरा सपना पूरा करोउस घर को ,उस घर के लोगों को तुम्हारी जरूरत है बेटाजाओ शिवमजल्दी जाओजाओ शिवमजल्दी जाओ मेरे बच्चे|’

अम्मामामा |’ शिवम ज़ोर से चिल्लाया|

उसने पीठ पर ज़ोर का दर्द महसूस किया| उसने देखा कि वह चारपाई पर लेटा  है और बगल में एक तरफ वैद्य जी बैठे है तो दूसरी तरफ दादाजी सिर पर हाथ रखे बैठे हुए थे| रानू खड़ा शांत भाव से शिवम को देख रहा था और माँ उसके पैरों के पास बैठी उसके तलवों पर मरहम लगा रही थी|

उसने माँ का चेहरा गौर से देखा जिस पर रोते रोते आँखों के नीचे आँसुओ की एक धार सी बन गई थी| रानू खामोश सहमा सहमा सा बैठा था|

वैद्य जी उठते ही बोले – ‘शिवम बड़ा ही भाग्यशाली हैमौत के मुँह से जो लौट आयामैं तो एक पल इसकी डूबती नब्स को देख डर ही गया थापर सब ईश्वर की माया है|’ फिर शिवम की माँ की ओर देखते है -‘अब  शिवम बिल्कुल ठीक हैबहू ये मरहम पैर पर लगाती रहो और पीठ पर भी लगाकर सिकाई कर देनामैं खाने की दवाई रानू के हाथ भिजवा देता हूँ|’

वैद्य जी चले गए और उनके पीछे पीछे रानू भी| अब शिवम अपने चारों ओर देखता है| उसे कुछ समझ नहीं रहा था| बस उसे सब के चेहरे के मातमी आसार धीरे धीरे मिटते नज़र रहे थे|

दादा जी अभी भी शिवम का सिर प्यार से सहला रहे थेशिवम अपना हाथ बड़ा कर दादा जी के हाथ के ऊपर रख लेता है – ‘दादाजीआप मुझसे नाराज़ है?’ ये सुन दादा जी अपने भरे गले से कुछ कह पाने पर सिर्फ गर्दन हिला कर उसका माथा प्यार से चूम लेते है|

मैं अब कभी शरारत नहीं करूँगादादा जी ,माँ आप सबका कहना  भी मानूँगा और मन लगा कर पढ़ाई करूँगा|’

सभी शिवम की बात सुन कर आश्चर्य कर रहे थे लेकिन सभी के चेहरे पर तो बस शिवम की वापसी की खुशी थी|

अर्चना ठाकुर

जन्म : 05 मार्च जन्म स्थान : कानपुर(उत्तर प्रदेश) शिक्षा : मनोविज्ञान ,हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि,परामर्श में डिप्लोमा, एम0 फिल (मनोविज्ञान) प्रकाशन : विभिन्न मुद्रित एवम अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ,कहानियाँ,लघु कथा ,यात्रा व्यतांत आदि का प्रकाशन प्रकाशन : प्रथम पुस्तक (कहानी संग्रह – लेखक की आत्मा) सम्पर्क : अर्चना ठाकुर, कानपुर arch .thakur30 @gmail .com [email protected] Postal address : Archana Thakur , c/o shri R D Thakur , H. No. – 183, Kailash Nagar, P.O. – Jajmau, Kanpur -208010 (UP) mo. 8765305156