इंसानियत –एक धर्म ( नवम भाग )
राखी की बात सुनकर पांडेयजी थोड़ा चौंकते हुए से बोले ” क्या कह रही हो बेटा ? उसे कैसे बचा सकते हैं ? उसे बचाने के लिए मैं हर तरह से तुम्हारा सहयोग करूँगा । मैं नहीं चाहता कि समाज में गलत सन्देश जाए । लोगों का इंसानियत पर से भरोसा ही उठ जाए । इंसानियत की रक्षा के लिए ही उसको बचाना जरूरी है । कहो मुझे क्या करना पड़ेगा ? “
राखी ने उनकी आंखों में झांकते हुए शांति से पुछा ” आप लोग आज ही असलम भाई को अदालत में पेश करोगे ? “
पांडेय जी ने जवाब दिया ” यह तो स्वाभाविक प्रक्रिया है । हम किसी भी मुजरिम को अदालत के आदेश के बिना चौबीस घंटे से ज्यादा हिरासत में नहीं रख सकते । आज दोपहर हम उसे अदालत में पेश करेंगे और आगे की तफ्तीश के लिए उसका रिमांड लेने में हमें कोई दिक्कत नहीं होगी । “
राखी ने पुछा ” आप असलम भाई को रिमांड पर क्यों लेना चाहते हैं ? “
” मैं तुम्हारी भावनाएं समझ रहा हूँ बेटी ! लेकिन ये एक प्रक्रिया है जिसका पालन मुझे करना ही पड़ेगा । ” पांडेय जी ने उसे न्यायिक प्रक्रिया समझाने की कोशिश की । ” रिमांड पर लेने के बाद हम अपराधियों पर लगे आरोपों के मुताबिक उनसे अपना अपराध कबूल करवाते हैं और फिर उन्हीं की निशानदेही पर उन आरोपों से जुड़े सबूत इकट्ठा करते हैं ताकि अदालत में आरोपी के अपने जुर्म से मुकरने की दशा में प्राप्त सबूत अदालत में पेश करके उनके गुनाह को साबित किया जा सके । आरोपी को अदालत में अपना पक्ष रखने की पूरी छूट मिलती है । तुम्हें यह तो पता ही होगा हमारे संविधान में न्यायिक प्रक्रिया का एक मूलमंत्र है और वह मूलमंत्र है ‘ भले ही सौ मुजरिम छूट जाएं लेकिन किसी भी निरपराध को सजा नहीं होनी चाहिए । ‘ “
पांडेय जी की बात सुनकर राखी के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी ” क्या बात है पांडेय जी ! आपने तो मुजरिमों को लेकर हमारे न्याय व्यवस्था का एक मजबूत पक्ष सामने रखा है लेकिन इसका क्या किया जाए कि हमारे न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी कभी कभी उनसे भी गुनाह करवा देती है । उन्हें वही दिखता है जो ये घाघ और झूठे मक्कार वकिल अपनी होशियारी से उन्हें दिखाना चाहते हैं । बड़े मुजरिम बड़ी आसानी से साफ बच कर निकल जाते हैं जबकि इतिहास गवाह है कई बेगुनाहों की जवानी जेल की कोठरियों में दम तोड़ गयी । अभी ताजा किस्सा है एक डाकिये के मुकदमे की जिसे अपनी बेगुनाही साबित करने में 27 साल लग गए । खैर मेरा मकसद कानून को आईना या नीचा दिखाना नहीं था मैं तो सिर्फ यह कहना चाहती हूं कि अगर आप आज असलम भाई की जमानत अर्जी का पुरजोर विरोध नहीं करोगे तो शायद उसे जमानत मिल जाये । माननीय जज हत्या की परिस्थिति व मुजरिम के कबूलनामे व उसके साफ सुथरे चरित्र को मद्देनजर रखते हुए उसकी जमानत की अर्जी मंजूर कर सकते हैं । “
राखी की बातें सुनकर पांडेय जी की आंखें कुछ सोचनेवाली मुद्रा में सिकुड़ गयीं और कुछ पल की खामोशी के बाद उनकी गंभीर आवाज सुनाई पड़ी ” तुम जैसा कह रही हो वैसा कुछ भी नहीं होनेवाला क्योंकि तकनीकी दृष्टि से अभी हमें असलम को हिरासत में रखकर उससे पूछताछ करके उसके खिलाफ मुकदमा चलाये जाने के लिए सबूतों के साथ आरोप पत्र तैयार करना है । और इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए माननीय अदालत हमारे पक्ष में फैसला करते हुए हमारी रिमांड की अर्जी को मंजूर करते हुए असलम के जमानत की अर्जी को नामंजूर कर देगी इसकी संभावना तब और बढ़ जाती है जब मुजरिम हत्या जैसे जघन्य अपराध का आरोपी हो । “
राखी ने हथियार डालनेवाले अंदाज में कहा ” ठीक है पांडेयजी ! आप अपना काम कीजिये । मैं अपना प्रयास जारी रखूंगी । अरे हाँ ! याद आया । क्या उस राक्षस का पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आ गया ? फोरेंसिक जांच करनेवालों की रिपोर्ट आ गयी ? “
” माफ करना बेटा ! मैं चाह कर भी तुम्हें यह विभागीय बातें नहीं बता सकता । मैं ये सारी बातें अदालत में ही खुलासा करूँगा ” पांडेयजी ने अपनी मजबूरी बताते हुए उसे इस बाबत कुछ भी बताने से साफ इंकार कर दिया था ।
” कोई बात नहीं ! मैं आपकी मजबूरी समझ सकती हूँ । मैं इस बाबत अदालत में होनेवाले खुलासे तक प्रतिक्षा कर लुंगी । आपने मुझे इतना सहयोग किया और मुझसे बात कर मुझे संतुष्टि प्रदान की इसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ । और आपके वरिष्ठों की भी शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने इस केस की विवेचना करने का अधिकार आप जैसे सहृदय अधिकारी को दिया है । मुझे पूरी उम्मीद है कि आपके रहते इस केस में असलम से कोई भी ज्यादती या बेईमानी नहीं होगी । धन्यवाद । ” कहते हुए राखी को जैसे कुछ याद आया हो ” मैं ये पुछना तो भूल ही गयी कि आप यहां जरूर किसी काम से आये रहे होंगे । क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकती हूं ? “
दरोगा पांडेय जी ने उसे बताया ” हाँ ! मैं तुमसे ही मिलने आया था । मेरा मकसद था तुमसे मिलकर घायल मरीज की हालचाल लेना । ऐसे मामले में हमारी नजर बराबर घायल की सेहत पर बनी रहती है । तुमसे मिलकर मरीज की बेहतरी का हाल जानकर अच्छा लग रहा है । अब मैं उनसे मिलकर उनका बयान लेना चाहता हूँ यदि डॉक्टर इसकी इजाजत दें तो । मैं अभी डॉक्टर साहब से मिलकर आता हूँ । फिर आपके सामने ही उनका बयान लेंगे । ठीक है ? “
कहने के बाद पांडेय जी जवाब की प्रतीक्षा किये बिना तेज कदमों से सामने ही अस्पताल अधीक्षक के कमरे की तरफ बढ़ गए ।
पांडेय जी के जाते ही राखी वहीं समीप ही पड़ी कुर्सियों में से एक पर बैठ गयी । पांडेय जी की बातें सुनकर और अपने घरवालों का रवैया जानकर उसकी चिंता बढ़ गयी थी । किसी भी तरह असलम को सजा न होने देने का उसने अपने आप से वादा कर लिया था । इंसानी मन भी कितना विचित्र है एक बार दूसरों से किया वादा भले ही तोड़ दे लेकिन किसी अपने या खुद से किया वादा तोड़ने का तो सोच भी नहीं सकता । कुर्सी पर बैठी आंखे मूंदे राखी आगे आनेवाली परिस्थितियों से निबटने का हल खोजने का प्रयास कर रही थी । तभी उसके दिमाग ने कहा ” तू यहां अस्पताल में बैठे बैठे असलम को बचाने के सपने देख रही है । कितनी बड़ी मूर्ख है तू । अरे ! यदि तू उसे वाकई बचाना ही चाहती है तो उठ ! जी जान से लग जा उसे बचाने की कोशिश में । इंसान अगर ठान ले तो कुछ भी मुश्किल नहीं है और जब इरादे नेक हों तो उस काम में ईश्वर भी मदद करता है । “