कहानी

दलदल

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माँ कितना ख्याल रखती थी अपने  बेटे का , माँ थी न ,माँ तो निस्वार्थ प्यार करती है बच्चो को, जान से भी जयादा ख़याल रखती है| एक जान को नो महीने अपनी कोख में पालना , अपने खून से उसे सीचना, पल पल उसकी धड़कन को महसूस करना | और फिर असहनीय पीड़ा, जिसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है, सह कर, मौत के साथ झुझ कर उसे जीवन दान देना,माँ को भगवान का रूप ऐसे ही नहीं कहा जाता। कुर्बान जाए उस माँ की ममता से ,भगवान दुआरा बक्शी इस अनमोल दात को जब पहली बार सीने से लगाती है तो प्रसव की सारी पीड़ा भूल जाती है । मौत के दर से लौटी ये माँ उसको मिले नवजीवन के लिए, एक नई रूह को दुनिया में लाने के लिए और उसकी झोली खुशियो से भरने के लिए,  परमात्मा का कोटि कोटि धन्यवाद करती है। और बच्चे के सुख के लिए दुआए मांगती है। माँ के प्यार की गाथा यही पर खत्म नहीं हो जाती मौत के साथ झुझ कर, प्राप्त की इस जान को पालने के लिए , अपना सुख चैन अपना सारा जीवन वार देती है । दुनिया से रुखसत होने तक रब से हाथ जोड़ कर बच्चे की सलामती मांगती रहती है|

शांति एक ऐसी ही माँ थी जिसने अपने बेटे को दिल से लगा कर पाला जिस का जीवन साथी भरी जवानी में दुनिया से रुखसत हो गया था |  बेटी के जीवन की चिंता में डूबे उस के माता पिता ने उसे दूसरी शादी के लिए जोर देते हुए कहा था , बेटी अबी तेरे आगे पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है इस मासूम जान को कैसे पालेगी ,अगर तू  माने तो कोई अच्छा सा वर ढूंढ  कर तेरा घर बसा देते है |” पिता के मुँह से  फिर से घर बसाने की बात, सीमा को छलनी कर गयी,आंसू बहाते हुए पुत्र को सीने से लगा कर बोली ” नहीं पिता जी रिश्ते भी कहीं बार बार जोड़े जाते है , इस बच्चे के सर से चाहे बाप का साया उठ चूका हो पर ये माँ अभी जीवत है इसकी परवरिश के लिए |” फिर गोद में बैठे अपने लाल का मुख चूम कर, अपने आप को और माता पिता को दिलासा देते हुए बोली ” और पिता जी मैं अकेली कहा हूँ , ये है न मेरा लाडला मेरे साथ ,जब तक इस शरीर में जान है मैं इसकी परवरिश करुँगी और मेरे बुढ़ापे में ये इस बूढी माँ की देखभाल करेगा ,अब तो यह जीवन इस के नाम, इस के सहारे मुझे पता भी नहीं चलना की कब जिंदगी का सफर खत्म हो जाना है।( फ़िर एक ठंडी सांस भरते हुए बोली) ” और जब अंतिम समय ये गंगा जल पिलाएगा और मेरी अर्थी को कन्धा दे कर शान से दुनिया से रुखसत करेगा तो स्वर्ग का रास्ता मेरे लिए अपने आप खुल जाएगा, बस उस समय मेरा जीवन सफल हो जाएगा |

बस फिर वो माँ अपना दुःख भुला कर अपने पुत्र का जीवन सँवारने में जुट गई। जमीन की फसल बेच कर जो पैसा मिलता उस के साथ गुजारा मुश्किल से ही हो पाता, कभी मौसम अच्छा होता तो फसल भी अच्छी होती और कभी मौसम का कहर फसलों की बर्बादी कर जाता| इसी लिए सीमा अपने बच्चे को पालने  के लिए लोगो के कपडे सीने का काम करने लगी की कल को कोई ये न कहे की बाप के साये बगैर बच्चा कैसे दिन गुजार रहा है, वो माँ होने के साथ पिता का फर्ज भी निभा रही थी| बेटे दीपक को आँखों से ओझल न होने देती|   दीपक की प्यारी मासूम बातो में अपनी खुशिया ढूंढ ही लेती । दीपक भी माँ से बहुत प्यार करता|

दीपक तकरीबन आठ साल का था उस दिन दीपक बाहर खेलने गया हुआ था| जाने से पहले माँ ने समझाया था “”दीपू  बेटा सुन .. अपने दोस्तों संग मिलकर खेलना…कहीं दुर नहीं जाना…और किसी के साथ लड़ना नहीं.. मेरा अच्छा बेटा देखना कही दरख्तो पर मत चढ़ना… कही तुझे चोट न लग जाए …. मेरे दिल को तो चैन नहीं मिलती, जब तक तुम्हे इन आँखों के सामने न देख लू जल्दी वापिस आ जाना मेरे लाल ।” और वो उसके जाने के बाद अपने आँखों के तारे के लिए खाने का बंदोबस्त करने लगी सरसों का साग ,मकई की रोटी और मीठी चूरी बहुत शोक से खाता था उसका लाडला, पुत्र के लिए ये सब कुछ करना उस का नित्य का काम था।

उसी वकत पड़ोसन की आवाज़ आई ” अरे शांति जल्दी आ तेरे दीपक के सर पर चोट लग गई ।ये सुनते ही शांति की आँखों के आगे अधेरा छा गया ,उसे लगा जैसे पैरों तले से जमीन खिसक गई हो| बेसुध शांति ,पागलो की तरह बाहर दौड़ पड़ी…दीपक के सर से बुरी तरह खून बह रहा था |शान्ति ने जैसे तैसे खुद को संभाला, अपनी चुनरी को उसके सर पर बांध कर बेहोश दीपक को उठाया ,पड़ोस में रहने वाला बजुर्ग चाचा और गाँव के कुछ बड़े उनको शहर हॉस्पिटल में ले गए। चोट गहरी होने के कारण डॉक्टर दीपक को ऑपरेशन के लिए अन्दर ले गए और शांति ऑपरेशन थिएटर के बाहर , ईश्वर से अपने लाल की रक्षा के लिए आँचल फैलाए प्रार्थना करने लगी ” है प्रभु मेरे पुत्र को ठीक कर दे , चाहे मेरी जान ले ले….पर मेरे लाल को अच्छा करदे…उसके बिना मैं जीवत नहीं रह पायुगी.. मेरे पति को तो पहले ही अपने दर पर बुला लिया अब मेरा बच्चा मुझे बख़्श दे दाता ,हर दिन बिना अन्न जल ग्रहण किए नंगे पाँव तेरे दर पर आया  करुँगी… और बस वो पथराई हुई नजरो  से एक टक दरवाजे की और देखे जा रही थी। तबी ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला ,डॉक्टर शांति के पास आ कर बोला फ़िक्र मत करो बहन जी आप का बेटा खतरे से बाहर है |”  माँ की दुआए रब के दर मंजूर हो गई थी पत्थर बनी शांति की रगो में जैसे फिर से लहू दौड़ने लगा| अंदर जा के अपने पुत्र को देखा जाने कितनी बार मुख चूमा सीने से लगाया ,माँ के तड़पते दिल को राहत मिली , उसकी पथराई हुई आँखे मोम बन कर गंगा जल बहाने लगी  सर झुका कर प्रभु को लाखो शुक्राने किए और अपने बेटे की देखभाल में लग गई | थोड़े ही दिनों में दीपक स्वस्थ हो गया । और माँ हर रोज नंगे पाँव बिना अन्न जल ग्रहण किए प्रभु के दर हाजरी लगाना न भूलती |

समय बीतता गया , बेटा जवान हो गया अब वो शहर कॉलेज में पड़ने लगा| गाँव आने जाने में काफी समय फ़िज़ूल जाने पर शहर में ही मकान किराए पर लेकर रहने लगा अब तो महीने में एक दो बार मिलने आ जाता और कभी सिर्फ फ़ोन ही कर देता | आज भी फ़ोन पर कहने  लगा ” माँ इस बार नहीं आ सकूँगा , पढ़ाई का बहुत प्रेशर है  … चाचा के हाथ खर्चे पानी  के लिए पैसे जरूर भेज देना| बहुत दिनों से बेटे को देखने को तरसती माँ बोली” बेटा एक बार अपनी माँ को अपना प्यारा मुखड़ा तो दिखा जा |”  दीपक गुसे और बड़ी लापरवाही में बोला” ओह हो माँ तुझे कितनी बार बताऊ की नहीं आ सकता एक तो पढ़ाई की परेशानी दूसरी तेरी जिद” कह कर फ़ोन काट दिया और माँ बेचारी ममता भरी आँखों से गिरते आंसुओं को पल्लू से समेटने लगी और गहरी सोच और फ़िक्र में डूबी वो  बड़बड़ाने लगी ” पता नहीं दीपू को क्या हो गया है बहुत चिड़चिड़ा हो गया है पहले तो कभी ऐसे बात नहीं की, पता नहीं शहर जा कर उसे किया हो गया है , मै तो पहले ही शहर पड़ने जाने के हक़ में नहीं थी, पुरखो की जमीन की संभाल कर लेता…कल ही चाचा जी  को शहर भेजुँगी उससे मिल कर उसके बारे में खबर ले आएगे |

दीपक अब बहुत बदल गया था।अब वो पहले जैसा नहीं रहा था उसके स्वभाव में बहुत बदलाव आ गया था , पता नहीं किन दुश्मनो ने उसे नशो की बुरी लत डाल दी थी अच्छे भले जवान लड़के को नरक की और धकेल दिया था | वो ड्रग लेने लग पड़ा था पहली बार जब उसके दोस्त उसे अपने साथ ले गए एक सुनसान जगाय एक कार रुकी  उसमे से एक हट्टा कट्टा , गुंडा टाइप दिखने वाला आदमी, मूह में पान चबाता हुआ, अपने तीन चार साथियो के साथ उतरा । लड़को को नशा दे कर, दीपक को सर से पाँव तक देखते हुए ,उसने धीरे से उसके हाथ पर नशा रखते हुआ बोला ” ले भाई तू भी ले ले स्वर्ग के नज़ारे ”  इस दलदल में धस चुके उसके साथिओ ने भी हल्ला शेरी दी और दीपा इस बात से बेखबर की ये एक ऐसी जहर है जिस ने उसे धीमक की तरह अन्दर से खाली करके एक दिन मिटटी बना देना है| रब जैसी माँ का ख्याल भी न आया उसे , बस उस दिन उसकी बर्बादी शुरू हो गई |  दीपक अब पढ़ाई के पैसो को नशो पर बर्बाद करने लगा और  कॉलेज से गैरहाजिर रहने लगा । अब वो इस जहर का इतना आदि हो चूका था की अगर यह जहर मिलने में जरा सी भी  देरी हो जाती तो वो बिन पानी की मछली की तरह तड़पने लगता, उसे लगता जैसे हजारों सांप और बिच्छू उसके शरीर पर रेंग रेंग कर उसे डंक मार रहे हो  और वो आपे से बाहर हो जाता । अब इस जहर के व्योपारिओं ने इस की कीमत और बढ़ा दी थी, दीपक रब जैसी माँ को धोखा देने लग पड़ा था |

दुसरे दिन चाचा जी कॉलेज पहुंचे , कॉलेज वालो ने बताया की दीपक पिछले एक महीने से कॉलेज ही नहीं आया उसने सिक लीव ली हुई है ।यह सब सुन कर चाचा जी दंग रह गए बहुत गहरी चिंता में ड़ूब गए , काफी देर कॉलेज के लड़को से उसके बारे पूछ ताश करते रहे| आखिर एक दोस्त उनको दीपक के पास ले गया जहा वो किराये के मकान में रहता था दीपक को नशे में धुत देख कर चाचा का दिल बहुत दुखी हुआ, माँ का सारा त्याग सारा प्यार बेटे के पैरो तले रुलता हुआ दिखाई दिया  फिर हिम्मत करके उसे समझाने लगा ओह माँ के लाल…तु किस काम के लिए आया था और किस विनाशकारी रास्ते पर चल पड़ा.. इस रास्ते ने  तुम्हे कहीं का नहीं छोड़ना।तेरी माँ  ने कितनी मेहनत से पाला है तुझे। और तुमने उसकी ममता का ये सिला दिया। ..एक बार भी तुझे माँ का ख्याल नहीं आया ” पर नशे की दल दल में धस चूका , दीपक वैसे ही पत्थर का बुत बना बैठा रहा चाचा जी की बातो का उस पर कोई असर न हुआ। चाचा जी उसे जैसे तैसे समझा बुझा कर घर ले आये और शांति को सारी बात बताई |

शांति ने जब अपने पुत्र की  ये हालत देखि तो उसे अपनी साँसे डूबती हुई महसूस हुई और लगा जैसे वो धरती में धसती जा रही हो। अपनी बुरी किस्मत को कोसते हुए फुट फुट कर रोने लगी ” है भगवान ये कैसे दिन देख रही हु , मेरी परवरिश में क्या कमी रह गयी की मेरा बेटा गलत राह पर चल पड़ा अपनी ममता के वास्ते दे कर उसे समझाने लगी ” ऐसा मत कर मेरे बच्चे .. इस जहर को मूह लगाने से पहले तूने एक बार भी, ये नहीं सोचा की ये रास्ते तुझे धीरे धीरे मोत की तरफ धकेल देंगे ….तेरे सिवाए मेरा और कौन है इस दुनिया में … मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हु अपने खातिर न सही तो मेरी खातिर ही इस जहर को छोड़ दे ..कल ही मेरे साथ नशा मुक्ति केन्दर चल, मैं तुझे इस तरह तबाह होते नहीं देख सकती  |

दुसरे दिन शांति दीपक को समझा बुझा कर नशा मुक्ति केन्दर ले गयी और इलाज शुरू भी हो गया पर नशे के जाल में जकड़ा हुआ दीपक उसमे से निकलने के लिए तयार ही नहीं था। उसे माँ अब अपनी दुश्मन लगने लगी थी और वो जहर प्यारी | अब वो घर की चीजे माँ के गहने बेच कर मोत खरीद लाता |  माँ उसे रोकती तो वो उसे राक्षश की तरह आँखे दिखाता, बुरा भला कहता , चीजे जमीन पर फैंक देता और दिन भर जिन्दा लाश की तरह पड़ा रहता। उस से यह सब नशे का राक्षश करवा रहा था। नशा जो इंसान को शैतान बना देता है|इस बार तो मौत के सौदागरों ने थोड़े पैसे देख कर सुना दिया था” अरे बेवक़ूफ़ सोने जैसी चीज तुम्हे कोढ़ी के भाव में कैसे दे दें … अगर तू इसे खरीदना चाहता है तो कोई गहने जा बड़ी रकम ला  और ले जा इसे | ” डाली पर लगे सूखे और किसी भी वकत टूटने वाले पते की तरह कापते हुए दीपक बोला ” इस बार इतने ही है , ये दर्द मुझसे बर्दाश्त नहीं होता मुझ पर रहम खायो …मुझे थोड़ी सी ही दे दो ।” पर इंसानियत के दुश्मनो के पास अगर दिल नाम की चीज होती तो वो किसी भी इंसान को ये मोत बांटते ही किओ| नशे के सिकंजे में फसा हुआ दीपक ऐसे छटपटा रहा था जैसे कसाई की छुरी तले बकरा होता है। नशा खरीदने के लिए वो जमीन के कागजात लेने घर की और चल पड़ा |

सुबह से ही सर्द हवाएं चल रही थी। रात को बर्फ जो पड़ी थी। शांति रोज की तरह शौल ओढ़े नंगे पाँव मंदिर की और चल पड़ी ।बेटे के लिए दुआए मांगती प्रशाद की थाली लिए वो घर वापिस आई|  दीपक अलमारी में रखे कागजात लेने की कोशिशो से असफल होने के बाद ,माँ के दुपट्टे में बंधी हुई चाबी लेने के लिए इन्तजार करने लगा| माँ के घर आते ही चाबी लेने के लिए उससे लड़ने लगा , माँ मिन्नते करने लगी ” न बेटा तुझे मेरी ममता का वास्ता मोत को खरीदने के लिए पुरखो की जमीन बलि न चढ़ा, होश में आ बेटा  तेरा इलाज चल रहा है, इस दलदल से बाहर आने की कोशिश कर।” नशा लेने के तड़प में अंधे हुए दीपक ने माँ को जोर से धक्का मारा वो जमीन पर गिर गई। माँ की परवाह किये बगैर उसने माँ के चुनरी में बंधा चाबी का गुच्छा लिया जमीन के कागजात बैच कर नशा कर आया और आँगन में लेट गया|

सुबह जब होश आई तो लड़खड़ाते कदमो से कमरे की और चल पड़ा| अंदर जाते ही किसी चीज से टकरा कर गिर पड़ा, ये कुछ और नहीं खून से सना, बर्फ बन चुका माँ का शरीर था| रात को गिरते वकत शांति का सर किसी नुकीली चीज में लगने के कारण उसकी मोत हो गयी थी|  गिरे हुए बेटे को उठा कर कलेजे से लगाने वाली माँ के पंख पखेरू उड़ चुके थे| नशे की तड़प में, माँ को धक्का मारने का समय उसकी आँखों के सामने घूम गया। पागलो की तरह माँ को जगाने के प्रयत्न करने लगा,उसे झिंझोड़ने लगा उसके हाथ लहू में सन गए। पर माँ तो जा चुकी थी| अगर जीवत होती तो रोते हुए बेटे को गले लगा कर उसका ये गुनाह भी माफ़ कर देती ,ममता का खून बहाने वाले पुत्र की आँखों में किया हुआ पाप, आंसू बन कर माँ के खून में जा मिला। वो पागलो की तरह चिल्लाते हुए बोला …. है भगवान.. ये मैंने किया कर डाला । मैंने माँ को मार डाला.. मैं खुनी बन गया, इस नशे ने मुझे शैतान बना दिया… मैं पापी बन गया पापी । उसका शोर सुन कर चाचा , आस पड़ोस  और सारा गाँव इक्कठा हो गया । शांति की लाश देख कर औरते विरलाप करने लगी और पुलिस उस पापी को हथकड़ी लगा कर जेल की और चल पड़ी चाचा दुखी मन से वैराग करता जा रहा था ” सतियानास हो जाए इन मोत के सौदागरों का जो इन नशो के जरिए पता नहीं और कितने इंसानो को चोर, हतियारे और शैतान बनाएँगे ।और अंत मोत की दलदल में धकेल देंगे संभल जाओ लोगो  इन नशो ने हजारो घर बर्बाद कर दिए … होश करो|