बँटा घर
बंटा घर बंटी आज दीवार है
करे एक दूजा न दीदार है
पले भेद ऐसे सभी के दिलो मे
बचा नफरतें एक औजार है
लहू से लहू की बुझी प्यास अब तो
करे बाप का कत्ल धिक्कार है
सरेराह जब आबरू बिकती पिता की
मगर लाड़ले हो रहे आज मक्कार है
बढ़े उम्र जब काम को कर न पाये
झुका शीश जीवन तभी सार है
मनोकामनाएँ सभी पूर हो तभी
बड़ो की कृपा जब मिले सफर पार है