माँ सिर्फ माँ
माँ शब्द है कितना प्यारा,
लगता सबको है यह न्यारा।
मोल नहीं है इसका कोई,
समझे जो यह ज्ञानी सोई।
करते गर्व जिस पर हम हैं,
माँ का दिया सुन्दर तन है।
दुनिया के सब कष्ट सहन कर,
बड़ा बनाती पाल-पोस कर।
मरते दम तक करती प्यार,
हो चाहे स्वयं सुख से लाचार।
सहकर वह लाख दुःखों को,
आने नहीं देती कष्ट बच्चों को।
बच्चों को खुश रखती माँ,
खुशी में उनकी सुख ढ़ुढती माँ।
माँ-बच्चे का है इक ऐसा जोड़,
नहीं है जिसका कोई मोल।
मोल नहीं है कोई तोल नहीं,
रिश्ता है यह सबसे अनमोल।
इसलिए माँ शब्द है इतना प्यारा,
समाया जिसमें है जग सारा।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट ‘स्नेहिल’