कहानी – तेरे आने की जब ख़बर महके
रात के दस बजे सुमन की आँखों मे नींद कोसों दुर थी. ऊँगली के पोरों पर गिनकर दिन कट रहे थे की अगले माह देव घर आ जायेंगे..
तकिये के पास रखी मोबाइल से बहुत धीमी आवाज़ मे जगजीत दा अपनी आवाज़ छेड़ रहे थे…
” तेरे आने की जब ख़बर महके
तेरी खुशबू से सारा घर महके…!”
तभी बगल के कमरे से सुमन को अपने ससुर जी के खांसने की आवाज़ सुनाई दी !सुमन सुनते ही उठ कर गई… सुमन के ससुर जी को कैंसर था…
” क्या हुआ पिताजी पानी लाऊ क्या?” मैने देखा मम्मी जी उठ कर बैठ गई थी.
“नही रहने दो…. अच्छा चाय बना दोगी क्या?”
“हाँ… पिताजी अभी लाती हूँ…!”
मैं चाय बना के पिताजी और मम्मी जी को चाय दी. पिताजी टीवी पर न्यूज देखने लगे थे..वही कश्मीर मे सेना पर पत्थरबाजी….
फ़िर मैं अपने कमरे मे आ गई ! सोचने लगी…. आज ईक हप्ते से पिताजी लगतार समाचार देखे जा रहे है , मैं समझ सकती थी… जिनका इकलौता बेटा फौज मे हो तो ये हालात मे क्या दर्द होता होगा ! देखती आ रही हूँ माँ पिताजी के आँखों मे वो दर्द , वो भी मेरे दर्द को समझते है.. पर कोई एक शब्द किसी से नही कहता की कब आँखों से आँसू टपक जाये !
… तभी मोबाइल का रिंग टोंन बज उठा..
“हेलो….”
“हेलो….जी देव कैसे है..आप”
“ठीक हूँ… तुम कैसी हो?”
“ठीक हूँ… आ रहे है न अगले माह?”
दस सकेंड के लिये कोई आवाज़ नही आई… ” क्या हुआ देव आप चुप क्यों हो गये..
” सुमन फिलहाल के लिये तो अभी मेरी छुट्टी केँसिल हो गई..यहाँ कश्मीर मे हालात बहुत खराब हो गया है…यहाँ के लोग सेना पर पत्थरबाजी… सुमन तुम सुन रही हो न?”
“जी…. सुन रही हूँ…”
“तुमको समझना होगा सुमन ईक फौजी की जिंदगी यही है…. दिल पर पत्थर रखना पड़ेगा आशा है तुम मेरी मजबूरी समझोगी..”
“मैं समझ सकती हूँ देव….आँखों मे आँसू और दिल मे आह को छुपा के आवाज़ को ठीक करके बोली…. “मैं जानती हूँ मेरे हीरो आप मेरी ही नही देश के हीरो हो.. आपकी सुमन कभी नही रोयेगी.. क्यों रोयेगी मेरी तो तमन्ना ही थी की मेरी शादी ईक फौजी से हो…. माँ पिताजी का चिंता बिल्कुल ना कीजियेगा… मैं बहू नही बेटी हूँ इस घर की..आप देश के दुश्मनों को धूल चटा के आईयेगा…मैं इंतजार करूँगी….”
“मुझे गर्व है तुम पर सुमन….” और फोन कट गया !
… रात बहुत देर तक खिड़की के पट से चाँद को देखती रही, जैसे बुलंदियों के मचान से उतरकर चाँद मुझसे कुछ कहने वाला हो ,कुछ दिनो से रात होते ही मन परिजात तन सिंगार हो जाता था बस तुम्हारी ख्यालों से ही क्यों , सोचने के लिये बहुत कुछ है पर सोचुंंगी नही ,आज तकिये के हर्फ़ पर मुझे नींद नही क्योंकि आँखों मे तुम हो , सुबह होती है और न जाने कितनी सिलवटें देखती हूँ अपनी बिस्तर की चादर पे ,और फ़िर दिल पर पत्थर रखकर मुस्कुरा देती हूँ की ये सिलवटें तुम ही तो हो.. !!
— आकाश कुशवाहा