सार छन्द
सार छंद ( 16 ,12 )
छन्न पकैया छन्न पकैया , ऐसे मेरे नाना
रोज़ सवेरे पानी देते , और देते थे दाना
छन्न पकैया छन्न पकैया , खुश होते थे नाना
उड़ते हुए परिंदे आते , चुगने को थे दाना
छन्न पकैया छन्न पकैया , था उनका यह कहना
अपनी तरह परिंदों की भी , भूख प्यास मिटाना
छन्न पकैया छन्न पकैया , सबसे था यह कहना
पशु पक्षी पेड़ पौधों ने , प्यार उनका जाना
छन्न पकैया छन्न पकैया , नेक काम तुम करना
कहते थे नाना हमेंशा , प्रेम सभी से करना ।।