आम कैसे खाएं ?
मेहुल सात वर्ष का प्यारा सा बच्चा था । स्कूल में नित नयी शरारतें करता पर किसी को उससे कोई शिकायत नहीं थी क्योंकि उसकी शरारतों से किसी का कोई नुक्सान नहीं होता था । एक दिन उसने घर के पिछवाड़े में गड्ढा करके एक पौधा उसमें लगा दिया । रात को उसे ठीक से नींद नहीं आती सुबह होते ही पौधे के पास जाकर देखता । एक दिन उसकी माँ ने देखा की उसे हो क्या गया है । बुलाकर प्यार से पूछा बेटा क्या बात है आजकल कुछ परेशान से लगते हो ? मेहुल कहने लगा माँ मैंने एक पौधा घर के पीछे लगाया है इसमें फल कब लगेंगे जानने के लिए बेचैन हूँ । माँ ने पूछा बेटा कौनसा पौधा लगाया है कौनसा फल तुम्हें चाहिए ? मेहुल ने भोलेपन से जवाब दिया माँ स्कूल के पास एक व्यक्ति कोई पौधे बेच रहा था मुझे आम बहुत अच्छे लगते हैं मैंने सोचा अपने घर के आम क्यों न खाऊं इसलिए मैंने यह पौधा खरीद लिया और घर में लगा दिया । माँ ने कहा की मैं भी तो देखूं वह पौधा । माँ ने देखा तो पौधा आम का नहीं था । मेहुल से पूछा बेटा किस चीज का पौधा लाये हो ? “यह तो पता नहीं पर मुझे तो आम खाने हैं ” ।
माँ ने कहा बेटा जैसा पौधा बोओगे वैसा ही फल मिलेगा । देखो जैसे मुर्गी के अंडे से मुर्गी निकलती है, चींटी के अंडे से चींटी वैसे ही नीम के बीज से नीम का पौधा बनता है, बबूल के बीज से काँटों वाला बबूल का पेड़ ही बनता है, वैसे ही आम की गुठली से आम का पेड़ बनता है । “अच्छा इसका मतलब आम खाने के लिए आम की गुठली ही लगानी पड़ेगी ” मेहुल ने बड़ी मासूमियत से पूछा । हाँ, यदि तुमने बबूल का पेड़ बोया तो आम कहाँ से खा सकोगे । बेटा इसी प्रकार अगर तुम अच्छे काम करोगे तो उसका फल भी अच्छा मिलेगा बुरे काम करोगे तो उसका फल भी बुरा मिलेगा । चोरी करने वाले को जेल की सजा भुगतनी पड़ती है, अच्छा काम करने वाले की सभी सराहना करते है, उसे इनाम भी मिलता है । बात मेहुल की समझ में आ गयी । यदि आम खाना है तो आम ही बोना पड़ेगा ।
उसने देखा था की लोग आम खाकर गुठली फेंक देते हैं कभी कभी उसमें पौधा उग आता है । अब वो स्कूल जाते समय आम के पौधे की तलाश में लग गया ।