गज़ल
लहरें कितनी उठेंगी समंदर कितना गहरा है।
हर किसी को अंदाजा नहीं है।
तूझे पाने की हसरत सिर्फ मुझे हैं।
बर्बाद होने का सबका इरादा नहीं है।
ज़हर देती हो तो बता दिया करो।
अमृत पीने का मुझे भी इरादा नहीं है।
सुना है धोखा देना तेरे शहर का व्यापार है।
तूने भी किया वहीं जिसमें तूझे घाटा नहीं है।
रामेश्वर मिश्र’निरासु’