माँ
माँ का हृदय नदी सा, जिसमें बहती ममता की धारा ।
माँ का वात्सल्य अंबर सा,जिसमें समाहित जग सारा ।।
माँ दुख न बाँटती अपना, खुशियाँ सब संग मनाती है ।
माँ बच्चों को बहुत प्यारी, पिता की डाँट से बचाती है ।।
माँ बच्चों को, बड़ों का, सम्मान करना भी सिखाती है ।
माँ ही बाजार से,बच्चों को,नये-नये कपड़े
दिलाती है ।।
माँ बच्चों को खुश रखने, अपनी खुशियाँ भुलाती है ।
माँ खुद भूखी रहती पर,बच्चों को, हाथों से खिलाती है ।।
माँ के हाथों की रोटी , बच्चों को बहुत ही सुहाती है ।
माँ खुद चल जाए कांटों पर, बच्चों को गोद उठाती है ।।
माँ रात में नींद से उठकर, बच्चे को दवा पिलाती है ।
माँ एक कौर और, कह – कहकर पूरी रोटी खिलाती है ।।
माँ-माँ कह, जब बोले बच्चा, माँ फूली नहीं समाती है ।
माँ बच्चे की प्रथम गुरू है, बच्चे को निपुण बनाती है ।।
माँ राम और महावीर की गाथा, बच्चों को सुनाती है ।
माँ बच्चों को, संस्कारवान और बुद्धिमान बनाती है ।।
माँ लाड़-दुलार करती है, बच्चों का जीवन बनाती है ।
माँ; बच्चों के दुःख में, दुःखी हो अश्रु धार बहाती है ।।
माँ इस अनंत, अपार संसार रूपी दीपक में ; बाती है ।
माँ पतंग तो बच्चे धागा, बच्चों पर माँ जान लुटाती है ।।
- नवीन कुमार जैन (बड़ामलहरा)