कविता

ओ री गौरैया

गौरैया को अपने आंगन या आसपास हम सबने कब चीं-चीं करते और कब पैरों के पास फुदकते और उड़ते देखा है ? सवाल की तरह जवाब भी जटिल है। आज भी नन्हीं गौरैया के सानिध्य भर से बच्चे हो या बड़े सबके  चेहरे पर मुस्कान खिल उठती है। पर अब वही नन्ही गौरैया विलुप्त होती पक्षियों में शामिल हो चुकी है और इसके लिए हम लोग ही जिम्मेदार हैं। गौरैया का कम होना, संक्रमण वाली बीमारियों और परिस्थितिकी तंत्र बदलाव का संकेत है।
बीते कुछ सालों से बढ़ते शहरीकरण, रहन-सहन में बदलाव, मोबाइल टॉवरों से निकलने वाले रेडिएशन, हरियाली कम होने जैसे कई कारणों से गौरैया की संख्या कम होती जा रही है।आज समय की जरुरत है कि गौरैया के संरक्षण के लिए हम अपने स्तर पर ही प्रयास करें। तमाम आंगन गौरैया के इंतजार में पलकें बिछाएं गुनगुना रहे हैं-
ओ री गौरैया… अंगना में फिर आ जा रे ..
ओ री  सोन चिरैया वापिस आ जा रे
कहाँ गई हर आंगन से गौरेया तुम
करके हर  घर का कोना-कोना सूना तुम
दिल पुकारे राह निहारे वापिस आ जा रे
ओ री  सोन चिरैया ओ री गौरेया
 लौट के आजा रे   मेरे घर आंगन रे
क्यों रूठ कर चली गई हो तुम?
याद आती है वो धमाचौकड़ी
हम सब करते जब फुदकती थी तुम
बताओ न क्यों रूठ गईं तुम?
लौट आओ फ़िर से बस एक बार तुम
वापस बुलाने  घर आंगन में
बाट जोट रहे दुनिया भर में
गौरैया दिवस आज मना रहे हैं
दुनिया भर के हम सब लोग
ओ री  सोन चिरैया ओ री गौरेया
लौट के आजा रे   मेरे घर आंगन रे
एक बार सिर्फ़ एक बार तुम।
मोनिका अग्रवाल

मोनिका अग्रवाल

मुझे अपने जीवन के अनुभवों को कलमबद्ध करने का जुनून सा है जो मेरे हौंसलों को उड़ान देता है.... मैंने कुछ वर्ष पूर्व टी वी व सिनेमाहाल के लिए कुछ विज्ञापन करे हैं और गृहशोभा के योगा विशेषांक में फोटो शूट में भी काम करा है।मैं कंप्यूटर से स्नातक हूं। मेरी कविताएँ वर्तमान अंकुर, हमारा पूर्वांचल ,लोकजंग, हमारा मैट्रो, गिरिराज,पंजाब केसरी,दैनिकजागरण,मेरठ से प्रकाशित सुजाता मैग्जीन आदि में प्रकाशित हुई हैं। इसके अलावा वेब पत्रिका "हस्ताक्षर", "अनुभव","खुश्बू मेरे देश की" आदि में भी मेरी कविताओं को स्थान मिला है । साथ ही अमर उजाला, रूपायन,गृहशोभा , सरिता, मेरी सखी, फेमिना आदि मेरी कुछ कहानी ,लेख और रचनाओं को भी जगह मिली है। पता- कुमार कुंज जी एम डी रोड मुरादाबाद पिन -244001 9568741931 [email protected]