गौरैया को अपने आंगन या आसपास हम सबने कब चीं-चीं करते और कब पैरों के पास फुदकते और उड़ते देखा है ? सवाल की तरह जवाब भी जटिल है। आज भी नन्हीं गौरैया के सानिध्य भर से बच्चे हो या बड़े सबके चेहरे पर मुस्कान खिल उठती है। पर अब वही नन्ही गौरैया विलुप्त होती पक्षियों में शामिल हो चुकी है और इसके लिए हम लोग ही जिम्मेदार हैं। गौरैया का कम होना, संक्रमण वाली बीमारियों और परिस्थितिकी तंत्र बदलाव का संकेत है।
बीते कुछ सालों से बढ़ते शहरीकरण, रहन-सहन में बदलाव, मोबाइल टॉवरों से निकलने वाले रेडिएशन, हरियाली कम होने जैसे कई कारणों से गौरैया की संख्या कम होती जा रही है।आज समय की जरुरत है कि गौरैया के संरक्षण के लिए हम अपने स्तर पर ही प्रयास करें। तमाम आंगन गौरैया के इंतजार में पलकें बिछाएं गुनगुना रहे हैं-
ओ री गौरैया… अंगना में फिर आ जा रे ..
ओ री सोन चिरैया वापिस आ जा रे
कहाँ गई हर आंगन से गौरेया तुम
करके हर घर का कोना-कोना सूना तुम
दिल पुकारे राह निहारे वापिस आ जा रे
ओ री सोन चिरैया ओ री गौरेया
लौट के आजा रे मेरे घर आंगन रे
क्यों रूठ कर चली गई हो तुम?
याद आती है वो धमाचौकड़ी
हम सब करते जब फुदकती थी तुम
बताओ न क्यों रूठ गईं तुम?
लौट आओ फ़िर से बस एक बार तुम
वापस बुलाने घर आंगन में
बाट जोट रहे दुनिया भर में
गौरैया दिवस आज मना रहे हैं
दुनिया भर के हम सब लोग
ओ री सोन चिरैया ओ री गौरेया
लौट के आजा रे मेरे घर आंगन रे