फर्क नजरिये का
“तुम्हें हमेशा चाहा वही मिला फिर भी मन में इतना रोष क्यों? ये कैसी पेंटिंग बनाई तुमने,लगा जैसे बेटियाँ आत्मघात कर रही है” चित्र प्रर्दशनी में नैना के पेंटिंग पर छवि ने प्रश्न किया।
“आत्मघात ?”नैना आश्चर्य से छवि के प्रश्न का उत्तर देते हुये बोली।
“और नहीं तो क्या?देखो सब पानी में कूदने की तैयारी में लगी हो जैसे और एक तो कूद ही पडी़।”
“ऐसा लगता है हम बेटियाँ अपने जीवन का ये हाल किसी न किसी रूप में कर ही लेती है किसी न किसी तरह इस देह को तो कभी इस मन को मार ही लेती है।”
“अरे नहीं ये तेरे देखने का नजरिया है बाकि मुझे तो पंख लगाकर गगन में उडती यौवनायें दिख रहीं है जो अपना जीवन अपने हिसाब से जीना चाहती है रूप,सौन्दर्य ,प्रेम ,प्रेरणा कई भाव है छिपे और जहाँ तक आत्मघात की बात जौहर तो पद्मिनी ने भी किया था ऐसी ही कई वीरांगनाओं के साथ।”
“सही कहा सखी नज़रिया ही सब कुछ है।”चित्र में सारी स्त्रियों के चेहरों में तेज उभर आया जो छवि पहले न देख पाई थी।
अल्पना हर्ष