कविता : बेटियाँ
मैके की इज्जत कहलाती है बेटियाँ
शान ससुराल की भी दर्शाती है बेटियाँ
भाइयों को डाँट से बचाती है बेटियाँ
तो माँ सी ममता भी लुटाती है बेटियाँ
मैके में पायल छनकाती है बेटियाँ
ससुराल में चूड़ी खनकाती है बेटियाँ
पत्थर सा दिल भी रखती है बेटियाँ
तो मोम सी पिघल जाती हैं बेटियाँ
चलती है खुद काँटों पर बेटियाँ
तो फूलों से घर सजाती है बेटियाँ
पापा की परी बन चहचहाती है बेटियाँ
पिया के घर का फर्ज निभाती है बेटियाँ
ग़म अपने कभी न बताती हैं बेटियाँ
दर्द दिल में अपने ही छुपाती हैं बेटियाँ
माँ के मन का भाव समझती है बेटियाँ
और दुःख में भी धीर बंधाती हैं बेटियाँ
फिर भी घरों में क्यों उपेक्षित है बेटियाँ
कोख में ही क्यों मारी जाती हैं बेटियाँ
— बबीता अग्रवाल कँवल