कहानी

एक नर्तकी की प्रेमकथा

आज फिर वह वृद्धा पान वाले पंडित जी की दुकान पर आई थी ।काफी उदास थी, सिर्फ इतना ही बोली “पतुरिया को प्रेम ,स्वाभिमान ,एहसान ,कर्तव्य निर्वहन जैसी चीजों से दूर ही रहना चाहिए ।यह सब चीजें कुलीन औरतों के लिए होती हैं, कोठे वालियों के लिए नहीं। वृद्धा की आवाज में काफी दर्द था और काफी आत्मविश्वास भी।
वृद्धा चली गई तो मैंने पान वाले पंडित जी से पूछा- आखिर बात क्या है यह जब आती हैं तब ऐसी बातें करती है?
पंडित जी ने एक गहरी सांस लेते हुए बताना शुरू किया, यह बात उन दिनों की है जब मैं 17 – 18 साल का था । मुझे संगीत से बहुत लगाव था, मैं हारमोनियम सीखने के लिए भरथरी बेड़िया के पास जाता था। भरथरी की एक लड़की थी प्रेमा, महज 16 17 साल की रही होगी उस वक्त। अगर उसे सुंदरता की देवी कहा जाता तो कोई अतिशयोक्ति ना होती ।वह भी उस समय अपने परंपरागत व्यवसाय हेतु अभ्यास किया करती थी भरथरी तबला संभालते थे, और मैं हारमोनियम ,और पैरों में घुंघरु बांधकर जब वह 16 साल की रूपमती किशोरी गाती थी-” लेके पहला पहला प्यार भरके आंखो में खुमार” तो लगता था, संसार का सारा सौंदर्य यही उमड़ आया है । जी करता था ,उसके थिरकते हुए उन पैरों को चूम लूं।
मैं धीरे-धीरे उसकी तरफ आकर्षित होने लगा और उसके सौंदर्य आकर्षण में मैं ऐसा बंधा कि लोक लज्जा त्यागकर उसके साथ दूर-दूर तक सट्टे पर हारमोनियम बजाने जाने लगा ।ब्राह्मण समाज ने मुझे पतित घोषित करके समाज से बाहर कर दिया।
प्रेमा के कला और सौंदर्य के किस्से दूर-दूर तक महकने लगे थे।उसी समय एक जमीदार हुआ करते थे शिवदत्त सिंह ।शिवदत्त सिंह के छोटे भाई हरदत्त सिंह की शादी के लिए प्रेमा के नाचने का सट्टा बंधवाने खुद शिवदत्त सिंह आए थे। रोबीला चेहरा ,कलराशी घोड़ी पर बैठ कर आये थे ठाकुर शिवदत्त सिंह । आधा दर्जन लठैत साथ में थे ।उस जमाने में भरथरी ने प्रेमा के सट्टे के लिए ₹500 मांगे थे और शिवदत्त सिंह ने बिना मोलभाव किए नगद रुपए दे दिए थे ।
प्रेमा हरिदत्त सिंह की शादी में नाचने गई , मैं भी हारमोनियम बजाने गया था ।मगर उस कार्यक्रम में शिवदत्त सिंह मुझे प्रेमा के आस-पास ही घूमते दिखे। भाई के विवाह के बाद शिवदत्त सिंह उस बैलगाड़ी के साथ प्रेमा के घर तक आये ,जिसमें प्रेमा और बाकी साजिंदे आए थे ।प्रेमा रात भर की जगी थी वह आराम करने चली गई मगर मुझे कुछ गड़बड़ लग रहा था। इसलिए मैं रुका रहा। मैंने सुना शिवदत्त सिंह भरथरी से कह रहे थे ,बताओ क्या चाहिए तुम्हें प्रेमा के बदले?
भरथरी ने कहा – ठाकुर साहब प्रेमा मेरे बुढ़ापे की लाठी है, क्या कहूं कुछ समझ में नहीं आता है ? बड़ी देर की बातचीत के बाद उस पुराने जमाने में प्रेमा का सौदा दो लाख रुपए और 20 बीघा जमीन में तय हुआ। मेरे सीने पर तो मानो सांप लोट गया मगर मैं कर भी क्या सकता था?
मन मसोस कर रह गया ।
शिवदत्त सिंह की शादी पहले ही हो चुकी थी ।एक लड़का भी था ।अब शिवदत्त सिंह ही प्रेमा के मालिक थे। शिवदत्त सिंह ने प्रेमा से साफ कह दिया – प्रेमा! तुम उतार कर फेंक दो इन घुंघरूओं को, अब यह घुंघरू तुम्हारे पांव में शोभा नहीं देते ।आज से तुम शिवदत्त सिंह की हुई। प्रेमा कुछ दिन बड़ी उलझी उलझी सी रही ,उसके बाद धीरे-धीरे उसे भी शिवदत्त सिंह से लगाव हो गया ।
शिवदत्त सिंह अब महीने में एक-दो हफ्ते के लिए आते थे । मगर प्रेमा की सेवा के लिए दो नौकरानियां रख दी थी । और दो आदमी संदेश और सामान लाने ले जाने के लिए। प्रेमा ने नाचना बंद कर दिया तो मैंने भी अनायास उसके घर आना जाना बंद कर दिया।
कई नर्तकियों ने मुझे साथ काम करने के लिए बुलाया मगर मैंने सब को मना कर दिया । पेट पालने के लिए मैंने एक नाटक कंपनी में नौकरी कर ली ,हारमोनियम बजाने की।
धीरे धीरे वक्त गुजरता गया ,प्रेमा अब दो बच्चो की माँ थी ,शिवदत्त सिंह के अपनी पत्नी से भी दो लड़के और एक लड़की थी ।
सब कुछ समय के साथ सही चल रहा था मगर एक परिवर्तन आया ,इस बार लगातार दो महीने बीत गये ,राशन ,खर्चा सब कुछ आया।मगर शिवदत्त सिंह नही आये ।यह बीते हुए सालों में सबसे लंबा समय था, जब शिवदत्त सिंह प्रेमा से दूर रहे हो ।
प्रेमा व्याकुल हो गई, वो शिवदत्त सिंह से मिलने उनके गांव को निकल पड़ी।शिवदत्त सिंह मिले तो, मगर उनका स्वास्थ्य बहुत गिरा हुआ लग रहा था ,चेहरे का तेज मर गया था ,मुखकांति पीलेपन की ओर अग्रसर थी ।शिवदत्त सिंह ने प्रेमा से कहा मेरा स्वास्थ्य ठीक नही था ,इसलिए नही आ सका ।तुम अभी वापस चली जाओ ,अगर बिरादरी वालों को पता चला कि तुम अधिकारपूर्वक घर तक आने जाने लगी ,तो लोगों को मुँह खोलने का मौका मिल जायेगा ।प्रेमा ! मेरी लड़की सयानी हो रही है ,लोग रिश्ता करने में आनाकानी करेंगे।।मैं एक दो दिन में आऊँगा ।
प्रेमा लौट आयी, शिवदत्त सिंह नही आये मगर शिवदत्त की चिट्ठी जरूर आयी थी ।प्रेमा को पढ़ना नही आता था ,उसने चिट्ठी पढ़ने के लिए मुझे बुलाया ।तब तक मैंने भी सारे काम छोड़कर घर पर रहना शुरू कर दिया था ।जातिगत कर्म कर नही सकता था ,इसलिए पान की दुकान डाल ली इस चौराहे पर ।
मैंने चिट्ठी पढ़ना शुरू किया –
प्राणप्रिये प्रेमा !
यह दुनिया समाज माने या न माने मगर मैंने तुम्हे अपनी पत्नी ही समझा ।प्राणप्रिये तुम्हें दुख होगा, मगर सच यह है कि मुझे टीबी रोग हो गया है ,मैं तुमसे मिलने अब कभी नही आऊँगा ,मैं नही चाहता कि तुम्हे भी यह बीमारी हो जाये ।मैंने तुम्हें रानी की तरह रक्खा ,मैनै तुम्हारे घुँघरू उतरवाये थे ,मैं नही चाहता कि उम्र के इस पड़ाव पर मेरी प्रेमा घुँघरू पहने ।यह मेरी इज्जत के खिलाफ होगा ।इसलिए मैंने वसीयत कर दी है जिसके हिसाब से तुम मेरी अचल संपत्ति में आधे की हिस्सेदार हो ।
तुम्हारा
ठाकुर साहब,
प्रेमा फफक कर रो पड़ी।प्रेमा ने भर्राये हुये गले से कहा ,पंडित ! मैंने किसी का कुछ भी नही बिगाड़ा।
एक पतुरिया होकर पतिव्रता रही ,फिर भगवान ने मेरे किन अपराधों की सजा दी है।मेरी हँसती खेलती दुनिया को किसी की नजर लग गयी।
प्रेमा ने रोते हुए ही कहा कि ठाकुर साहब मैं कभी घुँघरू नही पहनूँगी ,मैं कभी आपकी इज्जत में दाग नही लगाऊँगी ।
मैंने प्रेमा को ढाँढस बँधाया ,और कहा कि प्रेमा!कोई जरूरत हो तो मुझे जरूर याद करना ।
छह महीने बाद सुनने में आया कि ठाकुर के फेफड़ो में मवाद बन जाने की वजह से ,लखनऊ के किसी बड़े अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है ।
हफ्ते भर बाद सुनने मे आया कि शिवदत्त सिंह खत्म हो गये ।मैं उस दिन प्रेमा के घर गया ,मैंने कहा तुम चलना चाहो तो ठाकुर के अंतिम दर्शन करने चल सकती हो ।प्रेमा के आँसू रुक नही रहे थे।प्रेमा ने कहा -ठाकुर साहब की लड़की शादी करने लायक है ,मैं जाऊँगी तो लोग कहेंगे कि पतुरिया, पत्नी बनकर आई है ,बिरादरी मे थू थू होगी ।मैं नही जा सकती ,इतना कहकर प्रेमा वहीं जमीन पर बैठ गयी और फूट फूट कर रोने लगी ।
ठाकुर के न रहने के बाद प्रेमा ने श्रंगार करना छोड़कर एक विधवा की तरह रहना शुरू कर दिया ।ठाकुर शिवदत्त सिंह के ही कुछ पट्टीदारों ने प्रेमा के हिस्से वाली जमीन अधिया पर बोने के लिए प्रेमा से संपर्क किया और प्रेमा ने हाँ भी कर दी ।
उधर शिवदत्त सिंह के न रहने के बाद सारी जिम्मेदारी शिवदत्त के बड़े लड़के देवीदत्त के कंधो पर आ गयी ।देवीदत्त अभी एक किशोर था ।बहन शादी करने लायक थी ।बाप के इलाज में तमाम पैसा रिश्तेदारों से उधार लिया था ,वह भी चुकाने थे। रिश्तेदारों ने पैसे भी माँगने शुरू किये थे ।कोई रास्ता न निकलता देख देवी ने दस बीघे जमीन बेच दी, तब जाकर कहीं उधारी चुकता हुई ।
दो साल बाद बहन की शादी पड़ी ।चाचा लोगों ने यह कहकर कोई मदद नही की ,कि बड़े भैया तो सारा पैसा उस पतुरिया को दे आते थे ।हम लोगों को क्या दिया जो हम मदद करें ?
देवी को चाचा लोगों के इस व्यवहार से बड़ी आत्मग्लानि हुई ।अपने स्वर्गीय पिता पर भी काफी गुस्सा आया और उसने गुस्से में मन ही मन ढेरों गालियाँ प्रेमा को भी दी ।मगर इनसे समस्या का समाधान नही हो सकता था ।देवीदत्त का छोटा भाई रमन भी अब समझदार हो गया था ।उसने कहा भैया ,मरे आदमी को कोसने से कुछ नही होगा ,दीदी की शादी के लिए कोई इंतजाम तो करना ही पड़ेगा ।आखिर में यह राय बनी कि फिर जमीन ही बेची जा सकती है और कोई रास्ता नही है ।देवीदत्त ने जमीन बेचकर बहन की शादी की ।
वक्त के साथ हालात ने पलटी मारी ,ठाकुर शिवदत्त सिंह के अस्त होते ही ,ऐश्वर्य और संपत्ति भी समाप्त होने लगे और उनकी जगह पर आर्थिक अभाव जन्म लेने लगा ।कल का किशोर देवीदत्त बड़ी मुश्किल से घर चला पा रहा था ,जमीन इतनी नही बची थी कि उसकी उपज से सारे घर का खर्च चल सके । देवीदत्त एक रात को लेटा था और उसने सोचा कि वह जमीन जो पापा प्रेमा पतुरिया को दे गये हैं,उसको हम ही अधिया पर बो लें ।
भोर होते ही देवीदत्त प्रेमा के घर की ओर निकल पड़ा ।देवीदत्त जब प्रेमा के घर पहुँचा, तो सफेद धोती पहने हुए एक औरत दरवाजे पर ही खड़ी थी ,देवीदत्त पहचान गया वो प्रेमा ही थी ।देवी ने बताया कि मैं शिवदत्त सिंह का बड़ा लड़का है ,आपके पास एक काम लेके आया हूँ ,आगर आप गाँव वाली जमीन हमें अधिया पर दे दें तो हम उसपे ज्यादा मेहनत करेंगें ।
पापा के खत्म होने के बाद घर की स्थिति बहुत बिगड़ गयी है ,इतना कहते कहते वो किशोर रुआँसा हो गया।
प्रेमा ने कहा ,मुझे मालूम है बेटा ! तुम कल सुबह आना ।
प्रेमा के अंदर भावनाओं का एक समंदर उमड़ पड़ा ,उसने सोचा जिन शिवदत्त सिंह ने मुझे रानी बनाकर रखा ,उनका परिवार कष्ट उठाये ।
नहीं !नहीं ! ऐसा नही हो सकता ,मेरा भी कर्तव्य है उस परिवार के प्रति ।आखिर में वह मेरे स्वर्गीय पति का परिवार है ।
अगली भोर में देवीदत्त फिर आया ।प्रेमा ने कहा ,बेटा तुम अपनी माँ और छोटे भाई को लेकर तहसील पहुँचो ,मैं वही मिलूँगी ।देवीदत्त इसके पहले कि कुछ पूँछता ,प्रेमा ने उससे कहा कि बेटा मैं भी तुम्हारी माँ हूँ,एक कहना मेरा भी मान लो ।देवीदत्त वापस घर चला गया ।
देवीदत्त घर गया ,और अपनी माँ से यह सब बात बताई ।पहले तो माँ तैयार नही हुई ,मगर बाद में घर के अभावों के बारे में सोचकर तैयार हो गयी ।जब देवीदत्त माँ और छोटे भाई के साथ तहसील पहुँचा,तो प्रेमा वहाँ पहले से मौजूद थी ।
शिवदत्त सिंह की पत्नी ने जब प्रेमा को देखा तो न चाहते हुए भी उनके अंदर का दर्द छलक आया-
प्रेमा! अब तुम्हें क्या चाहिए ,पति छीना ,अधिकार छीने ,संपत्ति छीनी ,सुख चैन छीन लिया ।अब यहाँ क्यों बुलाया है ? प्रेमा चुपचाप बुत की तरह खड़ी सब कुछ सुन रही थी, देवीदत्त माँ को चुप करा रहा था ।
जब देवीदत्त की माँ चुप हो गयी , तो प्रेमा ने कहा -बहन यह परिवार तुम्हारा ही नहीं ,मेरा भी है।मैं अपने कर्तव्य का निर्वहन करने आयी हूँ ।मैं तुम्हारी जमीन तुम्हें वापस करने आयी हूँ । मना मत करना, मैं पूरी तैयारी के साथ आयी हूँ ,मैं बैनामा के पैसे भी लेकर आई हूँ । रजिस्ट्रार कार्यालय में जब बयान देने के लिए प्रेमा को बुलाया गया ,तो रजिस्ट्रार ने पूछा -प्रेमादेवी पुत्री भरथरी बेड़िया तुम अपनी जमीन देवीदत्त सिंह तथा रमन सिंह पुत्र शिवदत्त सिंह को दे रही हो ,तुम्हें जमीन की रकम मिली ?
प्रेमा ने कहा – मैं जमीन बेच नही रही हूँ ,वापस कर रही हूँ साहब ! मैं पतुरिया के पेट से पैदा जरूर हुई थी ,मगर जिस आदमी ने मुझे इज्जत दी ,मुझे प्रेम किया ,मेरी हर जरूरत पूरी की ,मुझे अपनी पत्नी की तरह रक्खा ।मैं जिस आदमी की विधवा हूँ ,यह दोनो बच्चे उसी आदमी के हैं।मैं अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रही हूँ । साहब ! मुझ जमीेन की रकम बहुत पहले ही मिल चुकी है ,ऐसी रकम जो कोई नही दे सकता ।
मैं प्रेमा देवी पुत्री भरथरी बेड़िया पूरे होशोहवास मे अपनी पचास बीघा जमीन देवीदत्त सिंह तथा रमन सिंह पुत्र श्री शिवदत्त सिंह के नाम करती हूँ ।
देवीदत्त और रमन के आँखो से आँसू झर रहे थे ।
उन्होने रजिस्ट्रार कार्यालय में ही प्रेमा के पैर छू लिये ।
प्रेमा की भी आँखे नम थी ,प्रेमा ने दोनो लड़को को गले से लगाकर सिर्फ इतना कहा, खुश रहना मेरे बच्चों ।
प्रेमा ने अपने हिस्से की वह बीस बीघा जमीन बचा ली ,जो ठाकुर ने भरथरी को दी थी । प्रेमा को देवीदत्त सिंह अपनी शादी मे बुलाने आये थे ।मगर प्रेमा ने सिर्फ इतना कहा कि बेटा! मैंने तुम्हारे से पापा से वादा किया था कि ,मैं आपकी इज्जत पर आँच नहीं आने दूँगी ।मैं शादी में जाऊँगी तो लोग कहेंगे कि शिवदत्त सिंह मर गये ,मगर इस घर से पतुरिया का रिश्ता नही टूटा ।मैं नही जाऊँगी ,मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है ।कभी कोई जरूरत हो तो जरूर आना ।
प्रेमा ने अपने दोनों लड़को की अच्छी परवरिश की ,दोनों को पढ़ाया, लिखाया। कष्ट उठाये ,अपने खेतों में काम भी किया ,मगर घुँघरू नही पहने।
आज प्रेमा के दोनों लड़के सरकारी नौकरी कर रहे हैं ,वो प्रेमा की बड़ी इज्जत करतें हैं ।मगर छोटी वाली बहू कभी कभी उलाहना देती रहती है कि ,जिनको जमीन दे आयी ,उन्ही के पास रहो ।बड़ी राजा हरिश्चंंद बनने चली थी । कभी कभी वह जब बहुत दुखी हो जाती है ,तो मेरे पास चली आती है ,अपना सुख दुख रोने।आखिर अब मैं ही तो बचा हूँ उसके शुरुआती दिनो का साथी ।
यह बुढ़िया जो आई थी ,कोई और नही, वही प्रेमादेवी है ,अपने आप में एक आदर्श है प्रेमा ।
प्रेम का कर्तव्य निर्वहन कोई प्रेमा से सीखे ।
प्रेमा एक नर्तकी बनकर पैदा हुई थी ,मगर कर्तव्य निर्वहन में कुलांगनाओं को पछाड़ दिया ।

—डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी ,
रूम 171/1 बालक छात्रावास
मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज
इलाहबाद (उत्तर प्रदेश)

*डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी

नाम : डॉ दिवाकर दत्त त्रिपाठी आत्मज : श्रीमती पूनम देवी तथा श्री सन्तोषी . लाल त्रिपाठी जन्मतिथि : १६ जनवरी १९९१ जन्म स्थान: हेमनापुर मरवट, बहराइच ,उ.प्र. शिक्षा: एम.बी.बी.एस. एम.एस.सर्जरी संप्रति:-वरिष्ठ आवासीय चिकित्सक, जनरल सर्जरी विभाग, स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय ,फतेहपुर (उ.प्र.) पता. : रूम नं. 33 (द्वितीय तल न्यू मैरिड छात्रावास, हैलट हास्पिटल जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर (उ.प्र.) प्रकाशित पुस्तक - तन्हाई (रुबाई संग्रह) उपाधियाँ एवं सम्मान - १- साहित्य भूषण (साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी ,परियावाँ, प्रतापगढ़ ,उ. प्र.द्वारा ,) २- शब्द श्री (शिव संकल्प साहित्य परिषद ,होशंगाबाद ,म.प्र. द्वारा) ३- श्री गुगनराम सिहाग स्मृति साहित्य सम्मान, भिवानी ,हरियाणा द्वारा ४-अगीत युवा स्वर सम्मान २०१४ अ.भा. अगीत परिषद ,लखनऊ द्वारा ५-' पंडित राम नारायण त्रिपाठी पर्यटक स्मृति नवोदित साहित्यकार सम्मान २०१५, अ.भा.नवोदित साहित्यकार परिषद ,लखनऊ ,द्वारा ६-'साहित्य भूषण' सम्मान साहित्य रंगोली पत्रिका लखीमपुर खीरी द्वारा । ७- 'साहित्य गौरव सम्मान' श्रीमती पुष्पा देवी स्मृति सम्मान समिति बरेली द्वारा । ८-'श्री तुलसी सम्मान 2017' सनातन धर्म परिषद एवं तुलसी शोध संस्थान,मानस नगर लखनऊ द्वारा ' ९- 'जय विजय रचनाकार सम्मान 2019'(गीत विधा) जय विजय पत्रिका (आगरा) द्वारा १०-'उत्तर प्रदेश काव्य श्री सम्मान' विश्व हिंदी रचनाकार