गज़ल
तुम न होगे तो और क्या होगा ।
कोई मंज़िल न रास्ता होगा ।।
दिन न निकलेगा बिन तेरे दिलबर।
स्याह रातों का सिलसिला होगा।।
ज़ीस्त तेरे ही नाम कर दी है।
वो ही होगा कि जो बदा होगा।।
चाँद तारों में छुप गये गर तुम ।
इस जहाँ में नहीं खुदा होगा ।।
मैं तसव्वुर सजा रही थी तेरे ।
क्या खबर थी कि बेवफा होगा ।।
गीत गज़लों में ज़िन्दगी केवल।
है हकीकत ये सोंचना होगा।।
दर्द तन्हा सदा रुलायेगा।
ये तबस्सुम ‘अधर’ जुदा होगा।।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’