ग़ज़ल
सीरत खराब उसकी जबाँ और भी खराब
ऊपर से देखिये जी गुमाँ और भी ख़राब
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चलने लगीं हैं आँधियाँ बदलाव की यहाँ
मौसम तो है खराब समाँ और भी खराब
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किस्मत भी खेलने लगी है खेल आजकल
लगने लगा है हमको जहाँ और भी खराब
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माना कि मंजिलों के ये रस्ते खराब हैं
कदमों के जो मिले वो निशाँ और भी खराब
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नज़रों की हद में वैसे भी वीरानियाँ ही थीं
उड़ती रही थी रेगे-रवाँ और भी खराब
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बातों में तल्खियां हमारी हैं जरा सी पर
उसका तो है अंदाज़े-बयाँ और भी खराब
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वाज़िब है मछलियों का भी होना खराब तो
पानी खराब उसपे कुवाँ और भी खराब
रमा प्रवीर वर्मा
नागपुर, महाराष्ट्र