गीत/नवगीत

गीत

इन अश्कों को सियाही मैं आज कर डालूँ ,
चलो इस दिल को ही अब क़लम कर लूँ ।
जुबां अल्फ़ाज़ रख जो बयाँ कर नही पाती,
वो हाल-ए-दिल मेरा तुमसे ए सनम कह लूँ ।।
थिरकती नाचती होठों पे जो मुस्कान है देखी
वहीं जलते हुए शोलों से कुछ अंगार रक्खे हैं
धधक उठते जो अक्सर ही आहों से टकराके
झुलस के लफ्ज़ कुछ मासूम यूँ ख़ाक होते हैं ।।
नज़्र झिलमिल में अक्सर तैरते जो सितारे है
ठहर थम सूख तप अनगिनत हैं खार उग बैठे
सँजोये उम्र एक जो ख्वाब जहाँ से छुपा करके
हो छलनी बंद पलकों से फिर तड़ीपार होते है।।
चेहरे पूनम तराशी है ये दुनिया चौंध की कायल
कि भीतर के अंधेरों को ये बख़ूबी ढाँक है लेती
जो कहते एक अदा इसको हकीकत जान लें
कयामत जीने के सबके अलग अंदाज़ होते हैं ।।
— प्रियंवदा अवस्थी

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।