बीवी-बॉस के चक्कर में घनचक्कर पुरुष
स्त्री जीवन भर तीन ‘प’ यानि पिता, पति और पुत्र नामक रिश्ते से मुक्त नहीं हो पाती। इनमें से एक न एक ‘प’ का दखल उसके जीवन में हमेशा बना ही रहा है। काल भले ही कोई रहा हो। सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग या वर्तमान कलयुग। चलिए थोड़ी देर के लिए मान लिया कि किसी स्त्री ने शादी नहीं की। शादी नहीं की, तो दो ‘प’ यानि पति और पुत्र की गुंजाइश ही नहीं रही। मान लिया कि शादी की भी और उसने किसी पुत्र को जन्म नहीं दिया। फिर भी पिता और पति रूपी ‘प’ तो मौजूद ही रहे न उसके जीवन में। अब यह मत कहिएगा कि पिता के बिना भी किसी स्त्री या पुरुष का जीवन हो सकता है। हां, कई बार ऐसा होता है कि किसी स्त्री को अपने पिता के बारे में ज्ञात न हो, लेकिन पिता का अस्तित्व ही न हो, ऐसा कहीं हो सकता है? स्त्री के पास दो ‘प’ यानी पति और पुत्र से मुक्त रहने का विकल्प हमेशा रहा है। यह भी सच है कि सौ में से निन्नान्वे स्त्रियां सज्ञान होते ही पति और पुत्र की कामना से तीरथ, व्रत में रत हो जाती हैं।
अब पुरुष की नियति देखिए। वह भी जीवन भर स्त्रियों की तरह दो ‘ब’ यानी बीवी और बॉस से मुक्त नहीं हो पाता है। स्त्रियों की तरह वह भी जवान होते ही एक ‘ब’ यानि बीवी के ख्वाब देखने लगता है। कंचे, गुल्ली-डंडा, ताश आदि खेलने की उम्र में वह बेचारा अपने वजन से दो गुना ज्यादा भारी बस्ता पीठ पर लादकर इस कामना के साथ स्कूल जाता है कि बड़े होकर एक अदद अच्छी बीवी और एक सहृदय बॉस मिलेगा। बचपन से ही उसके दिमाग में यह बात ठूंस-ठूंसकर बैठा दी जाती है कि बेटा! अगर अच्छी तरह से पढ़ाई-लिखाई नहीं की, तो जीवन में अच्छी बीवी और अच्छे बॉस को तरस जाओगे। यही समीकरण स्त्रियों पर भी लागू होता है। अच्छा पति और बॉस चाहिए, तो सारी किताबें घोंट जाओ, अच्छे नंबर लाओ। ज्ञानी बनो या भाड़ में जाओ, लेकिन मार्कशीट में नंबर कम नहीं दिखाने चाहिए।
भाग्य की विडंबना देखिए। पुरुष इन दोनों अर्थात बीवी और बॉस को प्रसन्न करने के चक्कर में जीवन भर घनचक्कर बना रहता है। पति या कर्मचारी के हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी बीवी या बॉस खुश हुए हों, ऐसा कोई उदाहरण हाल-फिलहाल में नहीं दिखाई देता है। आप किसी भी बॉस से बात करके देखिए, वह अपने अधीनस्थों के काम-काज से कभी खुश नहीं दिखाई देगा। एक अजीब सी खिन्नता उसके चेहरे पर विराजमान रहती है। कितना भी कमाइए, घर भर दीजिए, लेकिन बीवी को हमेशा लगता है कि उसका पति दुनिया का सबसे बड़ा निखट्टू है। कार्ल मार्क्स का द्वंद्वात्मकता का सिद्धांत यहां पूरी तरह लागू होता है। बीवी और बॉस का अस्तित्व तभी तक है, जब तक पति और अधीनस्थ का अस्तित्व है। यही तर्क स्त्री और पुरुष के संदर्भ में दिया जा सकता है। स्त्री को पुरुष बिना चैन नहीं और पुरुष तो स्त्री के लिए हर युग में जन्मजाती तौर बेचैन रहा है।