ग़ज़ल
वज़्न – 221 1222 221 1222
पिजरे से परिंदे को आज़ाद नहीं करते ।
कुछ लोग मुहब्बत को आबाद नहीं करते ।।
फ़ितरत है पतंगों की शम्मा पे मचलने की ।
ऐसे जुनूं पे आलिम इमदाद नहीं करते ।।
वह दर्द मिटाने का वादा किया था वरना ।
रह रह के मुकद्दर को हम याद नही करते ।।
ज़ालिम की अदालत में सच पे गिरी है बिजली।
मालूम अगर होता फरियाद नही करते ।।
वो साथ निभाएंगे कहना है बहुत मुश्किल ।
वो वक्त कभी हम पर बर्बाद नहीं करते ।।
हसरत ही मिटा बैठे कुछ लोग ज़माने में ।
खुशियों की तमन्ना को ईज़ाद नहीं करते ।।
दरिया का समंदर से मिलने का इरादा है ।
बेबाक भरोसे पर सम्वाद नहीं करते ।।
देखेंगे नहीं मुझको गर राज पता होता ।
महफ़िल की बड़ी लम्बी तादाद नहीं करते ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी