चाँद गर आसमां
चाँद गर आसमा नहीं होता
मेघ आशिक बना नहीं होता
चाँदनी चाँद को भजा करती
यदि मिला तब दगा नहीं होता
डाह की भावना पली होती
बाँट दिल फैसला नही होता
घन डराने लगे निशा को तब
शोर दादुर हुआ नहीं होता
रोशनी फैलती सदा नभ में
हर फिजा गूंज मचा नहीं होता
रास आयी नही मुहब्बत जो
रोज तारा घटा नहीं होता
प्रेम मोहनि लुभा सके हर को
शख्स हर के जरा नहीं होता
स्वाति की प्यास के लिए तब दो
बूँद चातक तका नहीं होता
बंध मिलन के खुले तभी दो दिल
एक दूजा जुदा नहीं होता