दिल मिरा जब चुरा
दिल मिरा जब चुरा नहीं होता
प्यार तब तू बना नहीं होता
चाह मेरी तुझे रही जब तक
तब तलक मैं खफा नहीं होता
देख पहरे बहुत लगे मुझ पर
इस जहाँ से सिला नहीं होता
प्यास मुझको रही इश्क की अब
इसलिए फासला नहीं होता
यह मुहब्बत नहीं रही होतीरही
ये जहाँ तब झुका नहीं होता
दिल तिरा दिल मिरे मिला तो फिर
प्यार से अब दगाफिर– नहीं होता
खूब छक कर पिया पियाला जब
बाद जिसके नशा नहीं होता
प्रेम में फूल औ फली जब तू
पर मुझे अब जला नहीं होता
जब नजर से नजर मिली तेरी
मौत बिन मैं मरा नहीं होता