हार मत मान
हार मत मान अपनी सिखाते हुए
जिन्दगी दोड़ती यह बताते हुए
दें रही यह नया सा सबक रोज जब
दिल बंटाती सभी को लड़ाते हुए
हो रहा है परेशाँ यहाँ आदमी
जी रहा जान अपनी बचाते हुए
लोग अपना निभाये न अब फर्ज जो
इसलिए वो दुखी औ सताये हुए
मान अपमान अब तो नहीं दीखता
अब अश्क खून उनको पिलाते हुए