“कुंडलिया”
माथा पकड़े घुट रहे, भैया वृद्ध अनेक
कैसे पति गुजरान हो, धूप छांव अतिरेक
धूप छांव अतिरेक, जर्जरित हुई व्यवस्था
हाँड़ माँस गतिटेक, बुढ़ापा उम्र अवस्था
कह गौतम कविराय, लिखू अब कैसी गाथा
हर ठठरी में घाव, दर्द से ठनका माथा॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी