कविता

पेट की भूख

मैने देखा ,
अपने घर के मंदिर के पास,
चौराहे पर एक लड़का
उसकी बहन और एक नन्ही सी बच्ची
कर रहे थे पेट की भूख की लड़ाई हुई थी,
वह ट्रेंड अपनी दुग्धावस्था से
अगर गीर भी जाती आठ फिट ऊपर से
रस्सी के एक डोर से,
तो उसे अफसोस कीस बात  का…….?
मुक्ति मिलती वरना पैसे मिलते
किया था,
 क्या कसूर उसने, जो भोग रही है
दुसरे के हिस्से की सजा
पढ़ाई की जगह कर रही
भूख की , जिंदगी की लड़ाई
हमें, उससे
 अपने जिन्दगी की मायने
की सीख लेना चाहिए
कि हम कहाँ खो रहे हैं
अपनी जिन्दगी!!

संतोष कुमार वर्मा

हिंदी में स्नातक, परास्नातक कोलकाता, पश्चिम बंगाल [email protected]