“पिरामिड”
(1)
ये
चाक
घुमाते
कुम्हार को
मानों झुलते
झुलाते मिनारे
अपनी विसात को।।
(2)
ये
आग
आँवे की
मटकी है
दीए कोसे हैं
खुले मुँह नाँद
लाल हुए बर्तन।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
(1)
ये
चाक
घुमाते
कुम्हार को
मानों झुलते
झुलाते मिनारे
अपनी विसात को।।
(2)
ये
आग
आँवे की
मटकी है
दीए कोसे हैं
खुले मुँह नाँद
लाल हुए बर्तन।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी