कविता

मेरा निधन

सहा हरदम मैंने बातो को
नहीं उठाया कभी इन हाथों को
स्वीकार लिया जब मैंने उसके
दिये गये किमती चाँटों को
इसलिए मेरा निधन हो गया।
मैंने बनाया उनके चमकते मकानों को
मैंने सजाया उनके चमकते दुकानों को
चलते रहें हम उनके अनुसार
खोले नहीं कभी अपने जुबानों को
इसलिए मेरा निधन हो गया।
चाहा मैंने जब अपना घर बसाने को
चाहा जब अपना दुःख मिटाने को
दबे रह गये मेरे अरमान जब
वो कहे अपने चमचों से मुझे ठुकराने को
इसलिए मेरा निधन हो गया।
तोड़ा मैंने हाथों से बड़े-बड़े चट्टानों को
झेला मैंने सागर में आने वाले तुफानों को
वो नहीं किये, गुजारिश हमारी पुरी
देना चाहा जब मैं अपने बेटे के मुस्कानों को
इसलिए मेरा निधन हो गया।
संतोष कुमार वर्मा

संतोष कुमार वर्मा

हिंदी में स्नातक, परास्नातक कोलकाता, पश्चिम बंगाल [email protected]