हमारा गांव
गाँव हमारा कितना प्यारा
लगता सब जग से न्यारा
दरवाजे पर खाट डालकर
बुजुर्गो की होती बैठक
माँ, चाची और भौजाई
मिल घर का काम करती
पापा चाचा भी रोज ही
निकल पड़ते अपने काम पर
भाई-बहन का दौड़ा दौड़ी
होती नित्य द्वार पर
ऐसे होते परिवारो का मेल
नही होता कभी किसी से बैर
गाँव का रूप अनोखा
ऐसा कही नही कोई देखा
आज लाख भ्रमण करते सभी
देश और विदेश की
गाँव जैसा नही मिलता
प्रेम और परिवार उन्हे
वहां तो सब कामो व्यस्त
अकेले ही रहते मस्त।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’