इंसानियत –एक धर्म ( भाग — द्वादश )
सुबह लगभग ग्यारह बज चुके थे जब राखी कचहरी परिसर में पहुंची थी । परिसर में लोगों की आवाजाही शुरू हो चुकी थी । कचहरी के बाहरी हिस्से में सड़क के किनारे बने छोटे छोटे अधकच्चे कमरों में चलनेवाले और नित खटखटाने वाले टाइप राइटरों की जगह अब कंप्यूटरों ने ले ली थी । लोग इन दुकानों के सामने खड़े अपना अपना काम होने की प्रतीक्षा में खड़े थे । अनमनी सी सुबह के बाद दिन चढ़ते ही अब कुछ लोग उत्साहित तो कुछ लोग सशंकित निगाहों से घूमते नजर आ रहे थे ।
इन सभी दृश्यों का अवलोकन करती राखी कचहरी परिसर में यूं घूम रही थी मानो उसे किसी चीज की तलाश हो । और फिर एक जगह एक बोर्ड देखकर उसका मन मयूर खिल उठा । ऐसा लगा जैसे उसकी खोज पूरी हो गयी हो । सचमुच उसकी खोज वरिष्ठ वकिल राजन पंडित का नाम लिखा सूचनापट देखते ही पूरी हो गयी थी ।
राजन पंडित एक बहुत ही सुलझे हुए और काबिल वकील थे और अपने आदर्शों की वजह से उनका सम्मान सभी न्यायाधीश भी करते थे । कहते हैं उन्होंने आज तक एक भी मुकदमा नहीं हारा था । ऊसकी वजह थी कि वह झूठे व मनगढंत फर्जी मुकदमे लड़ते ही नहीं थे । गरीबों के सच्चे मुकदमे निशुल्क लड़ने के लिए भी उन्हें ख्याति प्राप्त थी और उन्हीं के पास राखी एक आस लिए आई थी । राजन पंडित उसके पिताजी के घनिष्ठ मित्रों में से थे । उनका राखी के पिताजी के घर पर भी आना जाना था इसीलिए राखी और वकिल साहब एक दुसरे से भलीभांति परिचित थे ।
राखी उनके ऑफिस में दाखिल होने के बाद बाहर ही नहीं रुकी सीधे धड़धड़ाती हुई ऑफिस के अंदरूनी हिस्से में घुस गई जहां टेबल के पार ऊंचे पुश्त वाली कुर्सी पर पीठ टिकाए राजन पंडित किसी फाइल में खोए हुए थे । बाहरी हिस्से में बैठी रिसेप्शनिस्ट लड़की भी उसे मना करने की कोशिश करते हुए राखी के पीछे पीछे ऑफिस में दाखिल हो गयी थी । आहट सुनकर राजन पंडित राखी को पहचानकर कुछ बोलते कि उसके पहले ही वह लड़की खिसियाती हुई सी उनसे कहने लगी ” सर् ! मैंने मैडम को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन इन्होंने मेरी कुछ सुनी ही नहीं । “
मुस्कुराते हुए राजन पंडित ने इशारे से उसे बाहर जाने के लिए कहा कि तभी जैसे उन्हें कुछ याद आया हो सामने रखी घंटी पर जोर से हाथ मारा । उसी लड़की ने फिर अंदर झांका । राजन जी ने उसे एक चाय लाने के लिए कहा । तब तक राखी उन्हें नमस्कार करते हुए उनके सामने की कुर्सी पर बैठ चुकी थी ।
राजन पंडित हैरत से राखी को देख रहे थे जो इस तरह अचानक ही उनके सामने आ खड़ी हुई थी । हैरानी भरे स्वर में उन्होंने राखी से कहा ” कहो बेटी ! सब कुशल मंगल तो है न ? भाईसाहब कैसे हैं ? जंवाई बाबू कैसे हैं ? “
कुर्सी पर पहलू बदलते हुए राखी ने उन्हें संक्षेप में पूरी कहानी ज्यों की त्यों सुना दी ।
पूरी कहानी सुनने के बाद राजन पंडित के चेहरे पर चिंता की लकीरें और गहरी हो गईं । उनके सामने बड़ी विषम परिस्थिति आन खड़ी हुई थी । एक तरफ उनके उसूल और आदर्श थे जो उन्हें झूठे मुकदमे को हाथ में लेने से रोक रहे थे वहीं दुसरी तरफ उनके सामने पारिवारिक संबंधों की पेचीदगियां भी थी । अपने परम प्रिय मित्र और घरेलू सदस्य से भी बढ़कर अपनी बेटी जैसी राखी को वह कैसे उसके हाल पर छोड़ दे ?
कुछ देर की चुप्पी के बाद राजन पंडित की गम्भीर आवाज ऑफिस में गूंज उठी ” केस तो बिल्कुल शीशे की तरह साफ है मेरी बच्ची ! मुजरिम का इकबालिया बयान जिसमें उसने खुद अपने गुनाहों को कबूल किया है उसके खिलाफ सरकारी वकील को बहुत मजबूती प्रदान करता है । अब हमारे पास बचाने को बचा ही क्या है ? यूँ तो आज तक मैं एक भी मुकदमा नहीं हारा हूँ । कहते हैं मेरा नाम ही मुकदमे के जीत की गारंटी देता है लेकिन तुम्हारे इंसानियत के जज्बे को देखते हुए मैं तुम्हारे सामने नतमस्तक हूँ बेटी ! इंसानियत के नाम पर जब तुम इतनी बड़ी कुर्बानी देने जा रही हो तो क्या मैं इतना खुदगर्ज हूँ कि मैं जीत हार की जोखिम भी नहीं ले सकता ? और एक बात और जीता हुआ मुकदमा जीतने में कौन सी बहादुरी है । मजा तो तब है जब आप ऐसी चुनौती पूर्ण बहस का हिस्सा बनें और हारे हुए मुकदमे को जीत कर दिखा दें । मैं तुम्हारे लिए यह चुनौती कबुल करूँगा मेरी बच्ची ! मैं यह चुनौती कबूल करता हूँ और तुम्हें भरोसा दिलाता हूं कि मैं उस इंसानियत के पुजारी को बेदाग बचा लाऊंगा फिर मुझे चाहे जो भी करना पड़े । अब तुम निश्चिंत रहो और मुझे इस मुकदमे पर ध्यान लगाने दो । “
” अब आपका ही सहारा है अंकल जी ! ” कहकर राखी ने उनसे विदा लेनी चाही कि तभी राजन पंडित ने उसे निर्देश दिया ” रश्मि के पास केस की डिटेल लिखती जाओ जैसे आरोपी का नाम उसका ओहदा वगैरह .. ठीक है ! “
” बहुत बढ़िया अंकल ! मैं रश्मि के पास अभी सारी जानकारी नोट कराए देती हूँ । ” कहते हुए राखी उनके ऑफिस से निकल कर बाहरी हिस्से में बैठी रिसेप्शनिस्ट लड़की रश्मि के पास असलम से जुड़ी पूरी जानकारी दर्ज कराने लगी ।
अगले कुछ ही मिनटों बाद वह अस्पताल की तरफ वापस जा रही थी लेकिन अब वह राजन पंडित का साथ पाकर खुद को आश्वस्त महसूस कर रही थी ।
अस्पताल पहुंचकर उसने अति दक्षता विभाग में सीधे प्रवेश किया । रमेश अभी भी अपने बेड पर आराम की मुद्रा में लेटा हुआ था जबकि बहुत सारी मशीनें उससे लगी हुई उसका निरीक्षण करने का अपना काम किये जा रही थीं ।
रमेश की सलामती से खुश राखी अब फिर असलम के बारे में विचार करने लगी । राजन पंडित से मुलाकात करके उसने बुरा तो नहीं किया ? क्या वो असलम को सजा से बचा पाएंगे ?
लेकिन अगले ही पल उसने जैसे खुद ही खुद को आश्वस्त करने की नीयत से समझा लिया था ” हाँ हाँ ! क्यों नहीं बचा पाएंगे ? आज तक उन्होंने जितने भी मुकदमे लड़े हैं सभी जीते हैं । अब यह मुकदमा लिया है तो उन्हें अवश्य इसमें कोई सम्भावना नजर आयी होगी । लेकिन क्या ? इसी सवाल का जवाब ढूंढती वह सघन चिकित्सा कक्ष के बाहर लगी कुर्सियों में से एक पर बैठी गहरे ख्याल में डूब गई ।