कविता : बातें बदल बदल कर
बातें बदल बदल कर
चेहरे बदल बदल कर
पहचान छुप ना पाई
परदे बदल बदल कर
पिंजरे की जाँच की
हमने भी खूब ऐसे
तोते , कबूतर , मैना
परिंदे बदल बदल कर
तब तालियाँ बजी खूब
आज बात बन न पाई
नग्मे को आजमा रहे
साजिन्दे बदल बदल कर
नोट बंदी के आलम में
काले कुबेरों ने भेजे
रुपये बदलवाने को
बंदे बदल बदल कर
हसरतों की अर्थिओं को
ढोये हैं जिंदगी भर
कफ़न बदल बदल कर
कंधे बदल बदल कर
— गौतम कुमार सागर