कविता

*तिलका छंद*

शिल्प:- [सगण सगण(112 112), दो-दो चरण तुकांत (6वर्ण प्रति चरण )

“तिलका छंद”

नयना पुलके

मनवा हरषे।।

चढ़ती बदरी

अतुरी बखरी।।

भिगती मछली

छलकी गगरी।।

कुमली बदनी

सह सू-नयनी।।

नयना चतुरी

रसना मधुरी।।

चितवे नगरी

महके डगरी।।

सजना अयना

छवि सू-नयना।।

घरनी घरकी

सुलक्ष्मी, वर की।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ