इंसानियत –एक धर्म (भाग — त्रयोदशम )
राखी पता नहीं कितनी देर तक यूँ ही बैठी रही और दिमाग के हवाई घोड़े दौड़ाती रही लेकिन उसे कोई संतोषजनक जवाब सूझ नहीं रहा था कि आखिर राजन अंकल असलम को कैसे बचा लेंगे ? तनाव की अधिकता से उसके सिर में दर्द शुरू हो गया ।
तब उसे ध्यान आया कि उसने तो अभी तक मुंह भी नहीं धोया था फिर चाय नाश्ता तो बहुत दुर की बात होती ।
अब उसे एक बार फिर रमेश की चिंता सताने लगी थी ।
हड़बड़ी में उठकर वह सघन चिकित्सा कक्ष में पहुंची लेकिन वहां रमेश को न पाकर वह चिंतित हो गयी । उसकी जगह कोई दूसरा मरीज लेटा हुआ था और बहुत सारी मशीनें उसके शरीर से लगी हुई थीं । तभी उसे ध्यान आ गयी डॉक्टर मुखर्जी की वह बात जिसमें उन्होंने बताया था कि अब रमेश की हालत खतरे से बाहर है और उसे कभी भी सामान्य कक्ष में स्थलांतरित किया जा सकता है । वह तुरंत ही भागते हुए सीढ़ियों की तरफ बढ़ी सामान्य कक्ष की ओर जो कि पहली मंजिल पर स्थित था । पल भर के लिए कक्ष के दरवाजे पर पहुंच कर हांफते हुए उसने कक्ष के अंदर का जायजा लिया । यह एक बडा सा दालान नुमा कमरा था जिसमें कई बेड कमरे में दोनों तरफ एक कतार से लगे हुए थे । बाहर से कुछ पता न लगने की सूरत में वह कक्ष में प्रवेश कर गयी । कक्ष में दाहिने कोने में अंतिम बेड पर लेटे रमेश को देखकर उसकी जान में जान आयी । तेज कदमों से चलती हुई वह रमेश के नजदीक पहुंची । आंखें बंद किये लेटे रमेश ने शायद उसके कदमों की आहट पहचान ली हो । धीरे धीरे आंखें खोलते हुए अधरों पर गहरी मुस्कान लिए हुए रमेश ने मानो राखी का स्वागत किया हो । राखी तड़प कर तेजी से उसके नजदीक जाकर बैठ गयी और प्यार से उसकी हथेलियों को अपने दोनों हाथों से थामते हुए उसके होंठ कांपे ” अब कैसे हैं आप ? वो मैं जरा थोड़ी देर के लिए ………”
रमेश ने दुसरे हाथ की उंगली उसके होठों के मध्य रखते हुए कहा ” न न कुछ न कहो ! बस खामोश बैठी रहो । कुछ देर तक जरा मैं भी इस देवी के दर्शन कर लूं । “
” वो तो मैं बताने जा रही थी कि मैं कहाँ ………” राखी ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि रमेश ने हाथ के इशारे से उसे एक बार फिर खामोश कर दिया और बोला ” कुछ न कहो ! राखी ! मैं सब जान और समझ रहा हूँ । मैं यह जान चुका हूं कि तुम कचहरी जाकर आ रही हो । असलम नाम के उस फरिश्ते को बचाने का हरसंभव प्रयास कर रही हो और करना भी चाहिए ..”
अचानक रमेश की मंशा समझकर राखी के चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित खुशी की चमक उभर आई । अब जैसे उसे कुछ सुनाई ही नहीं पड़ रहा हो उसके कानों में रमेश के कहे वही शब्द लगातार गूंजते रहे ‘ मैं यह जान चुका हूं …….’ जबकि उसकी निगाहें बराबर रमेश के चेहरे का अवलोकन कर रही थीं । उसे रमेश किसी गूंगी फ़िल्म के पात्र सा प्रतीत हो रहा था जिसके होंठ तो हिल रहे थे लेकिन कोई स्वर सुनाई नहीं पड़ रहा था ।
कुछ समय तक राखी इस खुशी का अनुभव कर इसकी बौछार में सराबोर होती रही । खुशी से सराबोर राखी पल भर में ही अपना सब दुख दर्द ‘ थकान और सिरदर्द भूल गयी । खुशी से दमकते चेहरे पर बड़ी प्यारी सी मुस्कान बिखेरते हुए राखी ने रमेश के हाथों को बड़ी ही कोमलता से अपने हाथों में थामते हुए मधुर स्वरलहरी बिखेरी ” कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही हूं ? ये आपके ही शब्द हैं न ? “
जवाब में खामोश रमेश ने बड़े ही प्यार से राखी की हथेलियों को अपने हाथों में भींच लिया मानो उसे यकीन दिला रहा हो कि वह अक्षरशः सही है । उसने जो देखा सुना सब सत्य है ।
बड़ी ही आत्मीयता से रमेश का कुशलक्षेम व हाल जानकर उसे हार्दिक प्रसन्नता हुई । नर्स के पास जाकर रमेश की हालत के बारे में जाना और उसकी बेहतरी के बारे में जानकर उसे हार्दिक प्रसन्नता हुई और वापस आकर रमेश के पास बैठ गयी ।
थोड़ी देर की खामोशी के बाद राखी की मधुर स्वर लहरी फिर रमेश के कानों में गूंज उठी ” मुझे पूरा यकिन था तुम मेरा साथ अवश्य दोगे । और मेरा यकिन इसलिए भी पुरजोर था क्योंकि मैं जानती थी कि तुम भी इंसानियत की डगर के ही राही हो भले तुमने इस पर चलने का दुसरा मार्ग अपना लिया हो लेकिन मंजिल तो आखिर एक ही थी न ? फिर हम देर तक भला जुदा जुदा राहों पर कैसे रहते ? अपने लोगों की भलाई के लिए कट्टरता का रास्ता अख्तियार करना भी कहीं न कहीं इंसानियत से मुंह मोड़ने जैसा ही है । हमारे पुरखों ने कहा भी है ‘ वसुधैव कुटुंबक्कम ‘ अर्थात पूरी धरती के लोग यानी समस्त मानव जाति एक परिवार की तरह है फिर कुछ नासमझ लोगों की वजह से हम समस्त मानवों को इंसानियत से परे होकर क्यों देखने लगते हैं ? बेशक बुरे कर्म करनेवालों अपराधियों व जरायमपेशा लोगों का हर तरह से प्रतिकार किया जाना चाहिए । ऐसे लोगों को कानून तो सजा देता ही है इनका इनके ही समाज के लोगों द्वारा सामाजिक बहिष्कार भी किया जाना चाहिए । सामाजिक सद्भाव बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम जाती धर्म व समुदाय के संकीर्ण नजरिये से ऊपर उठकर एक दूसरे की मदद करने की चेष्टा करें । अफवाहों पर ध्यान न देते हुए इंसानियत की राह पर मजबूती से अपने कदम जमाये रहें और देखो ! मैंने यही किया और कितनी खुशी की बात है कि अब इस कठिन राह पर आप मेरे साथ हैं । अब मुझे कोई चिंता नहीं ‘ कोई भय नहीं । ” कहते हुए राखी एक पल को सांस लेने के लिए रुकी ।
उसकी निगाहें अभी भी रमेश के चेहरे का ही निरीक्षण कर रही थीं जब कि रमेश के चेहरे पर मुस्कान गहरी हो गयी थी । हाथों में थामे राखी की हथेलियों पर अपनी पकड़ कसते हुए उसने जवाब दिया ” तुम सही हो राखी ! तुम्हारा रास्ता भी सही है और सचमुच तुम्हारी हिम्मत लगन और जज्बा देखकर मैं तुम्हारे सामने नतमस्तक हूँ । मैं भी नहीं चाहता कि किसी को उस गुनाह की सजा मिले जो उसके हाथों अनजाने में इंसानियत की रक्षा करने के लिए हो गया हो । मेरे तो यह सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि अगर ऐन वक्त पर असलम तुम्हारी मदद नहीं करता तो क्या गजब होता ? हमारी तो दुनिया ही लूट चुकी होती । लेकिन यह क्या ? हम तो यहां बैठे सिर्फ बातें ही कर रहे हैं और वह फरिश्ता वहां जेल के सींखचों में कैद सजा भुगत रहा है । जाओ ! मेरी फिक्र न करो । अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ । बस ये जख्म सूखते ही मुझे भी हर कदम पर अपने साथ पाओगी । जाओ ! देर न करो ! असलम की जमानत का इंतजाम करो ! “
” सही कहा आपने ! लेकिंन दरोगा अंकल जब बयान लेने आये तो सोच समझकर बयान दीजिएगा । अपना ध्यान रखिएगा ! मां जी बस आ ही रही होंगी । अच्छा ! तो मैं चलती हूँ । जल्दबाजी में मैं असलम का पंडित अंकल से परिचय कराना ही भूल गयी थी । “
कहने के साथ ही राखी ने धीरे से रमेश के हाथों से अपना हाथ छुड़ाया और फिर एक झटके से उठ खड़ी हुई । खामोश निगाहों से बहुत कुछ कहते हुए राखी मुड़ी और फिर तेजी से कमरे से बाहर जानेवाले दरवाजे की तरफ बढ़ गयी ।
अस्पताल से बाहर निकल कर राखी एक ऑटो में बैठकर कचहरी की तरफ चल पड़ी ।