गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

दूर होकर हमसे तुमको, अकेले चलना आ गया
पास आने पर मुँह मोड़ा तब से बदलना आ गया

हमसे दूर तुम जाते रहे, और मुसाफ़िर आते रहे
दूरियों पर अब तुमको भी तो सम्भलना आ गया

परखा था बोहोत हमको, जब तलक थे उनके
जब हुए पराए हम, ख़ुद को बदलना आ गया

प्रेम का वास्ता देकर, रोकने की कोशिश की
पर अब इन सब से, उनको निकालना आ गया

मजबूर होकर के बोहोत, रोया गिड़गिड़ाया मैंने
दर्द दिल का अब, आँखो में मसलना आ गया

मेरे दर्द को जान कर भी, वो हमसे और दूर रहे
मुस्कुराते देख अब उन्हें, चहरे बदलना आ गया

अपनो से दूर होकर के, हर सपना पूरा होता है
‘राज’ से दूरी बढ़ाकर, उन्हें समजना आ गया
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✍️ राज मालपाणी
शोरापुर – कर्नाटक

राज मालपाणी ’राज’

नाम : राज मालपाणी जन्म : २५ / ०५ / १९७३ वृत्ति : व्यवसाय (टेक्स्टायल) मूल निवास : जोधपुर (राजस्थान) वर्तमान निवास : मालपाणी हाउस जैलाल स्ट्रीट,५-१-७३,शोरापुर-५८५२२४ यादगिरी ज़िल्हा ( कर्नाटक ) रूचि : पढ़ना, लिखना, गाने सुनना ईमेल : [email protected] मोबाइल : 8792 143 143