गीतिका
दूर होकर हमसे तुमको, अकेले चलना आ गया
पास आने पर मुँह मोड़ा तब से बदलना आ गया
हमसे दूर तुम जाते रहे, और मुसाफ़िर आते रहे
दूरियों पर अब तुमको भी तो सम्भलना आ गया
परखा था बोहोत हमको, जब तलक थे उनके
जब हुए पराए हम, ख़ुद को बदलना आ गया
प्रेम का वास्ता देकर, रोकने की कोशिश की
पर अब इन सब से, उनको निकालना आ गया
मजबूर होकर के बोहोत, रोया गिड़गिड़ाया मैंने
दर्द दिल का अब, आँखो में मसलना आ गया
मेरे दर्द को जान कर भी, वो हमसे और दूर रहे
मुस्कुराते देख अब उन्हें, चहरे बदलना आ गया
अपनो से दूर होकर के, हर सपना पूरा होता है
‘राज’ से दूरी बढ़ाकर, उन्हें समजना आ गया
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✍️ राज मालपाणी
शोरापुर – कर्नाटक