चाँदनी रात
चाँदनी रात, महकता चंदन ।
खिल उठा देख कुमुद का यौवन।
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हवा मे रात की रानी महकी
दूर महका कोई सघन उपवन ।
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गर तेरे रूप की फुहार पड़े ,
मेरे उर मे महक उठे सावन ।
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दूर तक महका इश्क का किस्सा,
सोचकर महका ,देख ! मेरा मन ।
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मेरे हाथो की लकीरों में तू !
इसलिए महका है मेरा जीवन ।
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तुझपे लिक्खी थी, सो महकती है ,
ये ग़जल मैने लिखी थी बेमन ।
———————© डा. दिवाकर