स्टार प्लस टीवी चैनल द्वारा देश को तोड़ने का षड़यंत्र
स्टार प्लस पर “आरम्भ जल्द ही” के नाम से टीवी सीरियल आने की सुचना मिली है। इस सीरियल में आर्यों और द्रविड़ के मध्य युद्ध दिखाया जायेगा। साथ में यह भी दिखाया जायेगा कि आर्य विदेशी थे एवं उन्होंने इस देश के मूलनिवासियों पर हमला कर , उन पर विजय प्राप्त की थी। 1990 के दशक में टीपू सुल्तान एवं अकबर पर इसी तरह के टीवी सीरियल दिखाकर इन दोनों जिहादी मतान्ध शासकों को सेक्युलर सिद्ध किया गया था। यह एक प्रकार का हिन्दुओं की एक पूरी पीढ़ी का ब्रेन वाश करने के समान था। यही सुनियोजित षड़यंत्र एक बार फिर से किया जा रहा है। मरे घोड़े को फिर से जिन्दा किया जा रहा है। हम स्टार प्लस के इस षड़यंत्र का विरोध करते है। यह उत्तर भारतियों और दक्षिणभारतियों के मध्य आपस में विवाद उत्पन्न करने का प्रयास है। हम इस अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र को सफल नहीं होने देंगे।
आर्य शब्द कोई जातिवाचक शब्द नहीं है, अपितु गुणवाचक शब्द है। आर्य का अर्थ पूज्य, श्रेष्ठ, धार्मिक, धर्मशील, मान्य, उदारचरित, शांतचित, न्याय-पथावलम्बी, सतत कर्त्तव्य कर्म अनुष्ठाता आदि मिलता हैं। आर्य शब्द का अर्थ होता हैं “श्रेष्ठ” अथवा बलवान, ईश्वर का पुत्र, ईश्वर के ऐश्वर्य का स्वामी, उत्तम गुणयुक्त, सद्गुण परिपूर्ण आदि। रामायण और महाभारत में श्री राम और श्री कृष्ण को आर्यपुत्र से सम्बोधित किया गया हैं। द्रविड़ शब्द का अर्थ है दक्षिण भारत में निवास करने वाले के लिए हुआ है।
स्वामी दयानन्द जी सत्यार्थ प्रकाश 8 सम्मुलास में लिखते हैं- “किसी संस्कृत ग्रन्थ में वा इतिहास में नहीं लिखा की आर्य लोग इरान से आये और यहाँ के जंगलियो को लरकर जय पा के निकाल के इस देश के राजा हुए।” स्वामी जी आर्यों के निवास स्थान को आर्यव्रत के रूप में सम्बोधित करते हुए उसे भारतवर्ष ही मानते है। स्वामी जी लिखते है-
“आर्याव्रत देश इस भूमि का नाम इसलिए हैं की इसमें आदि सृष्टि से आर्य लोग निवास करते हैं परन्तु इसकी अवधि उत्तर में हिमालय दक्षिण में विन्ध्याचल पश्चिम में अटक और पूर्व में ब्रहमपुत्र नदी है, इन चारों के बीच में जितना प्रदेश हैं उसको आर्याव्रत कहते और जो इसमें सदा रहते हैं उनको भी आर्य कहते है।”- सवमंतव्य-अमंतव्य-प्रकाश-स्वामी दयानंद
डॉ अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक शूद्र कौन?[Who were Shudras?] में स्पष्ट रूप से विदेशी लेखकों की आर्यों के बाहर से आकर यहाँ पर बसने सम्बंधित मान्यता का स्पष्ट खंडन किया हैं। डॉ अम्बेडकर लिखते है-
1. वेदों में आर्य जाति के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं है।
2. वेद में ऐसा कोई प्रसंग उल्लेख नहीं है जिससे यह सिद्ध हो सके कि आर्यों ने भारत पर आक्रमण कर यहाँ के मूलनिवासी दासो-दस्युओं को विजय किया।
3. आर्य, दास और दस्यु जातियों के अलगाव को सिद्ध करने के लिये कोई साक्ष्य वेदों में उपलब्ध नहीं है।
4. वेदों में इस मत की पुष्टि नहीं की की गई की गयी कि आर्य, दासों और दस्युओं से भिन्न रंग थे।
डॉ अम्बेडकर ने स्पष्ट रूप से स्वामी दयानंद की मान्यता का अनुमोदन किया है। वे न तो आर्य शब्द को जातिसूचक मानते थे अपितु गुणवाचक ही मानते थे। इसी सन्दर्भ में उन्होंने शूद्र शब्द को इसी पुस्तक के पृष्ठ 80 पर “आर्य” ही माना है। वे किसी भी आर्यों के बाहरी आक्रमण का स्पष्ट खंडन करते हैं। न ही आर्य और दास को अलग मानते हैं। रंग, बनावट आदि के आधार पर आर्यों-दस्युओं में भेद को स्पष्ट रूप से निष्काषित करते हैं।
योगी अरविंद भी आर्य शब्द को श्रेष्ठ गुणों के आधार पर मानते है। आधुनिक विज्ञान ने DNA स्टडीज के माध्यम से स्पष्ट रूप से यह सिद्ध कर दिया है कि आर्यों का विदेशी होना एवं आक्रमणकारी होना एक मिथक कल्पना है। दक्षिण और उत्तर भारतियों के DNA एक समान है। वैज्ञानिक प्रमाण होने के पश्चात भी इस मिथक को पुनर्जीवित करना देश की अखण्डता और सुरक्षा को को विखंडित करने का षड़यंत्र है। देशविरोधी ताकतों के इस षड़यंत्र को आईये सफल होने से रोके।
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