अनुगीत छंद
टूटा-फूटा उन्हें मिले जो, लगे खिलौने सम।
बोधी हैं निर्धन के बच्चे,करें न कोई ग़म।
सड़क किनारे पड़ा मिला था,खाली कंटेनर।
मैले और कुचैले लत्ते,रखते सहेजकर।।१।।
उनके खातिर खाली बोतल,रखे बड़ी कीमत।
मंजन वाला डब्बा गुल्लक,धन की करें बचत।
बिस्किट के खाली रैपर हैं, गुड़िया की चूनर।
प्रतिदिन निर्मित करते रहते,सपने वाला घर।।२।।
अगर कहीं से कुछ पा जाएँ,खाते हैं मिलकर।
इक-दूजे को लगे खोजने,बिछड़े कभी अगर।
कट्टी भी हो जाती लेकिन,बोलें अगले पल।
कोई नहीं मलाल हृदय में,प्रेम बड़ा निर्मल।।३।।
पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’